Posts

Showing posts from June 26, 2022

खिड़की

Image
  जब जब होती हूँ उदास चुपचाप चली आती हूँ  खिड़की के पास खिड़की मुझे समझाती नहीं, बस दिखलाती है कहीं दूर किसी सख्त डाल पर नए अंकुरों को फूटते हुए कोमल अंकुर में छिपी मजबूत पत्तियाँ  नहीं देखती जमीन को वे पलकें उठाये  मचलती हैं ऊपर की ओर  मुझे याद आता है वह गमला जिसमें छिपाए होते हैं  मैंने  मुट्ठी भर मिर्ची के बीज  लौटकर देखती हूँ तो  बीजों के अस्तित्व को उगा पाती हूँ  मिर्ची के बीज अब बीज नहीं  बन चुके होते हैं खोल वे  नवांकुरित तने से लगे ऐसे  लटकते हैं  जैसे मुर्गे की गर्दन में लटकती है  पत्तेनुमा  लाल झालर  क्या उगना शाश्वत है ? क्या उगने की चाहत में तीखापन हो जाता है विसर्जित  मैंने पूछा  हवा के साथ खिड़की बोली उगना ही जीवन की मिठास है!  ***

वह चिड़िया क्या गाती होगी

Image
" वह चिड़िया क्या गाती होगी ?" प्रतिभा कटियार की नवलोकार्पित कृति Bodhi Prakashan से कुछ समय पूर्व प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक का शीर्षक प्रश्नाकुलता लिए हुए है। हम में से जो भी अपने बचपन में अति संवेदनशील रहा होगा उसने एक न एक बार ये प्रश्न हवा में उछाल कर ज़रूर पूछा ही होगा कि दूर नीम की डाल पर या घर की मुंडेर पर वह जो चिड़िया मटक मटक का चूं चूं चूं कर रही है , आख़िर वह क्या गाती होगी ? पंछियों की बोली हम जान पाते तो न जाने प्रकृति के कितने रहस्यों से रू ब रू हो सकते थे। खैर , प्रतिभा जी ने ये पत्र महामारी के घोर त्रासद समय में अपना गुबार उगलने या आसुओं को शब्दों में समेटने के दौरान लिखे हैं। इस बात को मद्दे नज़र रखते हुए जब सोचती हूं तो लगता है कि लेखिका ने चिड़िया को जीवन के प्रतीक में लिया होगा क्योंकि जिस समय लेखिका इस कृति को रच रही होगी उस समय सड़क , घर , अस्पताल , पगडंडियों और न जाने कहां कहां जीवन बेकल हो चिचिया रहा था। कहीं चिड़िया की तरह बोलते हुए जीवन को प्रश्रय भी मिला तो कहीं तड़पते हुए प्राण गंवाते हुए भी देखा गया। लेकिन जब जब उस मनहूस समय के चंगुल में