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हिंदी की जय हो

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चित्र: अरुण मिश्र  एक भाषा के रूप में हिंदी न सिर्फ भारत की पहचान है बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों , संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहिका , संप्रेषिका और परिचायिका भी है। हिंदी का व्याकरण और भाषा सरल , सहज और सुगम होने के कारण वैज्ञानिक भाषा के रूप में इसे जाना जाता है। हिंदी को दुनिया भर में समझने , बोलने और चाहने वाले लोगों की बहुत बड़ी संख्या मौजूद हैं। आजकल तकनीकी हस्तक्षेप ने हिंदी को जो त्वरा प्रदान की है वह उत्साहजनक है। मीडिया के विविध आयामों ने दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले जनों को भले संकुचित व्याकरणिक ज्ञान होने पर भी अपनी बात दूर तक पहुँचाने का जो अवसर दिया है , उससे हिंदी संवाद का दायरा बढ़ा है।   आज महानगरों में टेढ़ी-मेढ़ी ही सही युवा हिंदी में बात करते हुए देखे जा सकते हैं। यहाँ तक आकर कहा जा सकता है कि हिंदी का भवन विशाल है। उसके भवन के हाथीद्वार पर अलंकारों की महराबें हैं तो समृद्ध व्याकरण का उसका सिंहासन है। अपने आसन पर सुशोभित हिंदी के चरणों में नौ रस युक्त गंगा-जमुना बहती हैं। हिंदी के हाथों में छंदों के कमल हैं तो पाँवों में गीतों की पैजनियाँ। होंठों पर माध