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सावन की फुहार

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"देश रोजाना " दैनिक अखबार में आज 07.08. 2025 इस लेख में सावन के बहाने स्त्री मन की गहराइयों को उकेरा गया है, विरह, उपेक्षा, स्मृति और आत्मबोध के रंगों में। यह लेख परंपरा के भीतर पलते एकाकीपन की बात करते हुए आत्मनिर्भर स्त्री की ओर बढ़ते बदलाव को भावनात्मक रूप से प्रस्तुत करता है। वर्षा का संगीत सावन में थोड़ा और मधुर हो जाता है। एक ऐसा अन्तःस्वर, जिसमें जीवन की अकूत रस-गंध समाई होती है। धरती की नमी, नमी नहीं जैसे प्रकृति का आत्मबोध हो उठती है। होता था कभी सावन विरहिणियों की मौन प्रतिश्रुति, लेकिन अब वीडियो कॉल ने नित-नित नजदीकियों का एहसास पुख़्ता कर दिया है। अब सावन में स्त्रियों का विरह उतना नहीं खलता, जितना सीधी-सादी, गऊ-सी बहनों का मायके से उपेक्षित होना। हरियाली से भरे इस माह में उपेक्षिता का मन धधक उठता है। मानवीय आकांक्षाओं के हरित उच्चारण पर क्या उनका हक नहीं? आखिर हृदय के किसी कोने में प्रेमिल स्पंदन सबको भाता है। लेकिन मन की सूखी-झुराई धरती लिए बहनें सावन का स्वागत न मुस्कराहट से कर पाती हैं, न रोकर मन हल्का कर पाती हैं। डाली-डाली पर बैठी हरियाली हर आँगन को हरीतिमा ...