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अनुभव से अनुभूति तक की यात्रा

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सैर कर दुनिया की गाफ़िल , ज़िन्दगानी फिर कहाँ। ज़िन्दगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहाँ।। ख्वाज़ा मीर ‘ दर्द ’ का ये शेर जो भी कहता हो लेकिन लेखिका जय श्री पुरवार जी ने ‘ सपनों का शहर सैन फ्रैंसिस्को ’ जैसे चमकीले शहर के साथ-साथ कई देशों की यात्राएँ एक बार नहीं कई-कई बार की हैं। आपने ‘ सैन फ्रैंसिस्को ’ की संस्कृति , रीति-रिवाज़ , प्रेरणा , सपने , उत्सव , मित्रता , एतिहासिक धरोहरों , जीवनशैली , परम्पराओं के सम्भ्रांत रूप का और वहाँ की वैविद्ध्यपूर्ण संस्कृति आदि का जायज़ा खुले दिल से लिया है। उन्होंने उस शहर के जर्रे-जर्रे को अपने परिवार के साथ रहते हुए जिंदादिली से जिया और इस कृति में शब्द रूप में संग्रहित किया है। मानव जीवन दो तथ्यों पर कार्य करता है। अनुभव और अनुभूति। व्यक्ति अपने और दूसरे के व्यवहार , अभ्यास आदि से जो ज्ञान प्राप्त करता है उसे अनुभव कहते हैं। चिन्तन-मनन से जो आंतरिक ज्ञान मिलता है , उसे अनुभूति। यात्राएँ मनुष्य को सहज ही अनुभवशील और चिन्तनशील बना देती हैं। ‘ क्या दुनिया तुम्हारे पास आकर कहती है-देखो , मैं हूँ ’ - महर्षि रमण के कथन से यही ध्वनित होता है कि हमें