अनुभव से अनुभूति तक की यात्रा
सैर कर दुनिया
की गाफ़िल,ज़िन्दगानी फिर कहाँ।
ज़िन्दगी गर कुछ
रही तो नौजवानी फिर कहाँ।।
ख्वाज़ा मीर ‘दर्द’ का ये शेर जो भी कहता हो लेकिन लेखिका जय श्री पुरवार जी ने ‘सपनों का शहर सैन फ्रैंसिस्को’ जैसे चमकीले शहर के साथ-साथ कई देशों की यात्राएँ एक बार नहीं कई-कई बार की हैं। आपने ‘सैन फ्रैंसिस्को’ की संस्कृति, रीति-रिवाज़, प्रेरणा, सपने, उत्सव, मित्रता, एतिहासिक धरोहरों, जीवनशैली, परम्पराओं के सम्भ्रांत रूप का और वहाँ की वैविद्ध्यपूर्ण संस्कृति आदि का जायज़ा खुले दिल से लिया है। उन्होंने उस शहर के जर्रे-जर्रे को अपने परिवार के साथ रहते हुए जिंदादिली से जिया और इस कृति में शब्द रूप में संग्रहित किया है। मानव जीवन दो तथ्यों पर कार्य करता है। अनुभव और अनुभूति। व्यक्ति अपने और दूसरे के व्यवहार,अभ्यास आदि से जो ज्ञान प्राप्त करता है उसे अनुभव कहते हैं। चिन्तन-मनन से जो आंतरिक ज्ञान मिलता है,उसे अनुभूति। यात्राएँ मनुष्य को सहज ही अनुभवशील और चिन्तनशील बना देती हैं। ‘क्या दुनिया तुम्हारे पास आकर कहती है-देखो,मैं हूँ’ -महर्षि रमण के कथन से यही ध्वनित होता है कि हमें स्वयं दुनिया को जानने के लिए उसके पास जाना पड़ता है। जिस प्रकार प्यासा व्यक्ति कुँए के पास जाए बगैर प्यास नहीं बुझा सकता। उसी तरह घर बैठे भ्रमण का आनन्द नहीं लिया जा सकता है। हमारी लेखिका जय श्री पुरवार हृदय में दुनिया को जानने की चाह लिए सात समुंदर लाँघते हुए अपनी सम्वेदनशील कलम के साथ सपनों के शहर सैन फ्रैंसिस्को पहुँचती हैं। आपको बता दें कि इस पुस्तक में संग्रहित उनके अनुभव उनकी सात बार अमेरिका यात्रा का नतीज़ा है।
2021 में बोधि प्रकाशन
से प्रकाशित ‘सपनों का शहर सैन फ्रैंसिस्को’ जय श्री पुरवार जी की कृति सुन्दरतम स्थानों का भ्रमण,अपनों का संग साथ,मानवीय सम्वेदनाओं की समझ,भौगोलिक चिन्तन और विदेशी संस्कृति का रोचक और ज्ञानवर्धक यात्रा
वृत्तान्त है। वैसे भी यात्रा-वृत्तांत व्यक्ति के द्वारा केवल देखे व भ्रमण किये
गए स्थानों का विवरण मात्र न होकर इसमें यात्रा के दौरान उसके द्वारा देखे गए
स्थानों, स्थलों, भवनों, भोगी हुई घटनाओं एवं उससे सम्बन्धित अनुगूँजों और अनुभूतियों को कल्पना
एवं भाव-प्रवणता के साथ प्रस्तुत किया जाता है। इस कृति में प्रख्यात कहानीकार
ममता कालिया और सूर्यबाला लाल जी की शुभेच्छायें संग्रहित है। इस कथानुमा यात्रा
वृत्तान्त को पढ़ते हुए पाठक जान सकेगा कि लेखिका ने रसोई से लेकर बाज़ार, स्कूल से शॉपिंग मॉल, बैकयार्ड से लेकर प्रौढ़ व
बच्चों के भ्रमण पार्कों और ऐतिहासिक धरोहरों से लेकर वित्तीय ऑफिसेज आदि के बारे
में बेहद सजगता,रोचकता और भावनात्मक शब्दरूप से इस किताब में
विवरण दिए हैं।
राहुल सांकृत्यायन के अनुसार भी घुमक्कड़ीपन मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ उसके क्षितिज विस्तार का भी साधन होता है। उन्होंने ये भी कहा था,”कमर बाँध लो भावी घुमक्कड़ों, संसार तुम्हारे स्वागत के लिए बेकरार है।” उसी प्रकार जय श्री पुरवार जी ने मार्क्सवादी विचारधारा हो या भौतिकतावादी विचारधारा,स्थानीय वैयक्तिक दर्शन हो या रहन-सहन, वहाँ के भोजनालय, बेघर लोगों का जीवन, नाटक, थियेटर, फ़िल्में आदि सभी पर ‘अमेरिका ओ अमेरिका भाग -1’ में अपनी सम्यक दृष्टि डाली है। इस सबको पढ़ते हुए तो यही लगता है कि दूसरे देश की परिस्थितियों का इतनी गहराई से आँकलन तो भारतीय मूल का लेखक ही कर सकता था। ये इसलिए भी कहा जा सकता है कि व्यक्ति विशेष के हृदय में सम्वेदनात्मक घनत्व जो भारतीय संस्कृति में देखने को मिलता है,और कहीं नहीं। मैंने किताब पढ़ते हुए कई-कई बार महसूस किया है कि लेखिका जब पराये देश में कुछ अच्छा देखती है तो उसे वैसा सब अपने देश में होने का लालच-सा हो आता है। और जब वहाँ की ज़मीन पर मूल्यों की गिरावट का नज़ारा देखती हैं तो आपका मन अपने देश पर नाज़ कर उठता है। कहने का तात्पर्य ये है कि कहीं भी और कभी भी ‘सैन फ्रैंसिस्को’ घूमते हुए लेखिका के दिल से भारत ओझल नहीं होता है। जैसे- एक राजस्थानी पनिहारी पनघट से लौटते हुए लाख रास्तों के उतार-चढ़ावों में भटके और सहेलियों की बातों में उलझे लेकिन उसकी अंतर दृष्टि कभी भी घड़ों से नहीं हटती जो उसके सर पर रखे होते हैं। उसी तरह अपने हृदय में भारत को समेटे हुए लेखिका ने इस यात्रा को विधिवत अवलोकन करती हैं।
इस पुस्तक को और निर्मल वर्मा की डायरी विधा पर आधारित कृति ‘धुंध से उठती धुन’ हो या राहुल सांकृत्यायन की कृति ‘मेरी तिब्बत यात्रा’ सभी को पढ़ते हुए लेखक मन की विराटता और नया कुछ जान लेने की ललक से पाठक भी ओतप्रोत हुए बिना नहीं बचता है। लेखक के साथ उसके लिखे में पाठक भी यात्राएँ करते हुए चलता है। जहाँ लेखक सुस्ताता है वहाँ पाठक-मन स्वत: आलस्य महसूस करने लगता है और जहाँ रोमांच और हर्ष विषयक तथ्य आते हैं, वहाँ वैसी भावनाओं से भर जाता है। इस यात्रा वृत्तांतनुमा कहानी को पढ़ते हुए मैंने एक संजीदा,दार्शनिक और सभ्य दुनिया का अलग ढंग का रोमांच महसूस किया जिसमें निजता, पुलक और भावनात्मक आलोड़न परत-दर-परत खुलता जाता है। अतः मैं कह सकती हूँ कि इस पुस्तक ने मेरे पाठक मन को शुरू से अंत तक अपनी पठनीय रोचकता से अविचल जोड़े रखा।
वैसे दुनिया की बात को यदि छोड़ दें तो भारत में ख़ास तौर से यात्राएँ करना हमेशा स्वछंदता की परिधि में रखी जाती रही हैं। इसलिए इस पर पुरुषों का आधिपत्य स्वत: ही हो जाता रहा है। और स्त्रियों की प्राथमिकता यात्रा से लौटे व्यक्ति की सेवा-टहल करना भर होता है लेकिन इस दबी-सहमी रूढ़िगत भित्ति को स्त्रियाँ तब से तोड़ने का प्रयास करने लगीं जब से उन्हें अपने होने का होश आया। कुछ एक के अपने बच्चे रोजगार-नौकरी आदि के लिए विदेशी धरती पर बस गये। बहरहाल चारदीवारी से निकलकर सरहदों के पार देखने की इस कड़ी में कई लेखिकाओं के द्वारा यात्रा साहित्य लिखा जाता रहा है। जिनमें प्रमुख हैं- नासिरा शर्मा ‘जहाँ फव्वारे लहू रोते हैं’, कृष्णा सोबती का ‘बुद्ध का कमंडल’, गगन गिल का ‘अवाक्- कैलास मानसरोवर एक अंतर्यात्रा’ रमणिका गुप्ता का ‘लहरों की लय’ अनुराधा बेनीवाल का ‘आजादी मेरा ब्रांड’ एकदम अनगढ़ यात्रा वृत्तान्त आदि हैं। लेखिका जय श्री उस शहर की भव्यता बखानते हुए वहाँ के समुद्री टापुओं के बारे में लिखते हुए अल्कैट्राज़ आइलैंड को देखकर वे कहती हैं कि,”जेल की इमारत से मुलाक़ात के बाद बाहर निकले तो टापू एक स्वप्लिन कथा बन गया।”
“अमेरिका के बेस्ट सेलर लेखक ज़ेफ़ ग्रीन्वाल्ड की अपने देश के बारे में बेबाक़ उक्ति है-” हम अमेरिकन मूलतः युद्ध उन्मादी असभ्य लोग हैं जो विराट विध्वंस के अस्त्र बनाते हैं और बड़े तरतीब से पर्यावरण को नष्ट कर रहे हैं…।” लेखिका लिखती हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध में अपनी अणुशक्ति का रुतबा दिखाने के बाद भीषण नर संहार पर अमेरिका को कभी पश्चाताप नहीं हुआ वरन विश्व विजेता बनने का श्रेय उसने अपने ऊपर ले लिया। इसी प्रकार स्थानीय विवरण के साथ लेखिका के ऐतिहासिक समझ के दर्शन भी होते चलते हैं।
कृति के अनुक्रम में ‘एक विकसित देश की गाथा’ से लेकर ‘और मुझे सैन फ्रैंसिस्को से प्यार हो गया’ शीर्षकों के बीच अनेक उपशीर्षक हैं। उनके माध्यम से अगर आप जिज्ञासु और यात्रा करने के शौक़ीन हैं तो घर बैठे ही अमेरिका की सुंदर कॉस्मोपोलिटन नगरी सैन फ़्रैन्सिस्को की यात्रा कर सकते हैं। वहाँ की संस्कृति और परमपराओं के बारे में जान सकते हैं। विभिन्न घटना-परिघटनाओं, किबदंतिओं और रोचक वृत्तांतों के माध्यम से पिरोया गया है। लेखिका कहती हैं कि,“सैन फ़्रैन्सिस्को शहर में निरंतर रहते हुये हम अमेरिका की जीवनशैली में घुल मिल से गए, वहाँ की परंपराओं और संस्कृति को भी एहसास के साथ जिया पर अपनी भारतीय सांस्कृतिक स्वरूप को भी हर संभव बचाए रखा।” ये तो अपने होने के प्रति एक समर्पित लेखक का सजग होना ही कहा जाएगा।
“अमेरिका की पश्चिमी
दिशा में प्रशांत महासागर के तट पर स्थित लगभग पचास छोटी बड़ी पहाड़ियों पर बसी यह
नगरी तीनों दिशाओं में समुद्र से घिरा हुआ एक पेनिनसुला के समान है। पहाड़ियों पर
बसे होने के बावजूद यह अमेरिका के सबसे ज्यादा जनसंख्या के घनत्व वाले शहरों में
से एक है जिसका मुख्य कारण है यहाँ का सुखद मौसम, सुहावनी
प्रकृति। सिर के ऊपर नीला आकाश, पहाड़ियों से लेकर ढलान तक
हरियाली का समारोह, झील व समंदर पर पसरा हुआ आकाश का नीला
प्रतिबिम्ब और जहाँ तहाँ ऊँचाई पर बिछा हुआ कोहरे का चादर। इस शहर में आपाधापी
नहीं है पर एक स्पंदन है।” पुस्तक से।
सैन फ्रांसिस्को कैलिफोर्निया का चौथा और संयुक्त राज्य अमेरिका का 12 वाँ सबसे ज्यादा जनसँख्या वाला देश है। वहाँ बहुत ही फेमस गोल्डन गेट ब्रिज है और इसी गोल्डन गेट ब्रिज के कारण सैन फ्रैंसिस्को को गोल्डन सिटी भी कहा जाता है। यह खूबसूरत देश अपनी खाड़ी के लिए भी जाना जाता है इस खाड़ी का नाम सैन फ्रांसिस्को खाड़ी है। इस शहर में आकर लेखिका को अचानक लगता है कि,”ये कहाँ आ गये हम” मतलब इस शीर्षक में आपने अपने परिवार के बारे में जो दूसरे देश में रहकर कैसे खुशहाली से समय बिता रहा है,ललित कलाओं का संगम आदि देखकर लेखिका भावविभोर हो जाती है लेकिन ऐसा बिल्कुल मत समझा जाए कि उनकी दृष्टि वहाँ की खामियों पर नहीं है। वे अगली हेडिंग में लिखती हैं- ‘आज भी लागू है हाउस वाइफ़ की धारणा’
“हम तीसरी दुनिया के देश के निवासी दूर से देखकर और पढ़कर यही सोचते हैं कि अमेरिका में तो औरतों की दुनिया आज़ाद स्वर्ग के समान होती होगी। पर जैसे-जैसे देश में रहते हुए अनुभव होता है तो पाते हैं हमारे देश की तुलना में वहाँ भेदभाव कम होते हुये भी आज 21वीं सदी में भी वहाँ की स्त्रियों को आज़ादी और समानता का अधिकार व्यवहार में उपलब्ध नहीं है। सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी सिर्फ़ 30 प्रतिशत के लगभग है। अमेरिका में महिलाओं को उच्च-स्तर के और उच्च वेतन वाले पद कम दिये जाते है और कम वेतन वाली नौकरियों में उनका ज़्यादा प्रतिनिधित्व है। वर्तमान उपराष्ट्रपति कमला हैरिस अमेरिका की पहली महिला।” कृति से।
देश कोई भी हो स्त्री को वस्तु समझने की सोच और बर्बता का अधिकार देखने को मिल ही जाता है। लेकिन लेखिका का मन ‘सैन फ्रैंसिस्को’ शहर की भव्यता पर इस कदर निसार रहता है कि वे “मदर्स मीडो” की सुकुमारता देखकर उसे माँ की गोद जैसा आरामदेह,और वहाँ की स्वच्छ हवा को देह को दुलराने वाली कहने से भी नहीं चूकती। कुल मिलकर इस कृति में लेखिका की उदार मन की बानगी जगह-जगह देखने को मिलती है। इसे सिर्फ़ भ्रमण कहानी न कह कर देश प्रेम की कहानी भी कह सकते हैं। लेखिका ने इस प्रेम कहानी का वर्णन हमेशा अपने देश को, उसकी दशा और दिशा को मन-प्राण में लेकर की है । पुस्तक अनेक शीर्षक और उपशीर्षकों से और सम्बंधित चित्रों से सजी हुयी है जिन्हें आप कहीं से भी खोलकर पढ़ना शुरू कर सकते हैं । एक विश्लेषक के अनुसार इस किताब का आनंद पच्चीस साल से लेकर पच्चासी साल तक की उम्र के लोग उठा सकते हैं।
इस पुस्तक के
अंत तक पहुँचते और “सैन फ्रैंसिस्को” की पृथ्वी पर
उज्ज्वल उपस्थिति पढ़ते हुए मुझे यही लगा कि यदि कोई विदेशी हमारे भारत को देखने
आये तो वह क्या-क्या लिखेगा? अभी मैं सोच ही रही थी कि अचानक
मन अनेक-अनेक कलावीथियों से पर्दा उठाने लगा। हर एक साहित्यकार की अपनी एक विशिष्ठ
शैली होती है। जिसका रूप परिवर्तित होता रहता है, कभी
निबंधात्मक, कभी कथात्मक तो कभी आलोचनात्मक। भाषा के स्तर पर
अगर देखा जाए तो ‘सपनों का शहर सैन फ्रैंसिस्को’
की अभिव्यक्ति विशिष्ठ ढंग से की गई है। लेखिका के संस्मरणाकार होने
का प्रभाव इस पुस्तक पर सीधा दिखाई दे रहा है। जिसमें उनकी भाषा की शुद्ध
अभिव्यक्त हो रही है। इसके अनूठे गद्य के बारे में सूर्यबाला जी कहती हैं कि
“जयश्री पुरवार की अमेरिकी यात्राएँ मात्र दर्शनीय,प्रसिद्ध और प्राकृतिक रम्यता की शौकिया तमाशबीनी नहीं है। उन्होंने
संक्षिप्त और प्रवाही शैली में समेटते हुए यायावरी की रम्यता को बरकरार रखती हैं”
इस प्रकार देख सकते हैं कि इस पुस्तक में ‘सपनों
का शहर सैन फ्रैंसिस्को’ का अनुपम सौन्दर्य, पहाड़, सपाट मैदान, ऊँची-नीची
पगडंडियाँ, झीलें, टापू, हाफ मून वे, स्टेट यूनिवर्सिटी और सिलिकॉन वैली और
वहाँ के दर्शन जैसी संपूर्णता को एकाकार करके प्रस्तुत किया गया है।अंत में यही
कहूँगी कि जैसे गगन गिल कहती हैं कि हिमालय जाने की तैयारी में शिव पुराण को पढ़ा
था।उसी प्रकार सैन फैन्सिसको शहर घूमने जाने वाले को इस किताब ‘सपनों का शहर सैन फ्रैंसिस्को’ को पढ़कर जाना चाहिए
क्योंकि ये कृति उसके लिए गाइड का काम करेगी। आशा करती हूँ लेखिका के द्वारा हमें
और भी रोचक यात्रा वृत्तांत पढ़ने को मिलते रहेंगे।अस्तु !
कृति : सपनों का शहर सैन फ्रैंसिस्को
प्रकाशक : बोधि
****
कृति बहुमत में प्रकाशित |
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