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वसंत के केंद्र में प्रेम की ज्योत्सना

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    पत्रिका पृष्ठ की तस्वीर  हमारी हथेलियों की तरह पृथ्वी की हथेली  में भी मौसम की अमिट रेखायें और ऋतु चक्र होते हैं। उसी के अनुसार संसार अपने आप को प्रकाशित करता हुआ सदा सृजनशील रखता है। हम कह सकते हैं कि जीव-जगत एक दूसरे के पूरक हैं। मौसम की मुट्ठियों में हमारे जीवन की मिठास-खटास सुप्त रूप से बन्द पड़ी होती है। मौसमों की करवटों में सांसारिक जीवन सार निहित है। अब देखो न! नितांत ठिठुरती सर्दी की ऋतु जैसे ही अपने प्रिय के गुनगुने देश जाने को उत्सुक होती है , ऋतुराज की पालकी संसार के दुर्गम पथ पर चुपके से उतर आती है। चारों ओर ठिठुरे उपवन और डालियों में फलने-फूलने की अदम्य लालसा अचानक बलवती होने लगती है। धरती की नवतिका गतिविधियों का समाचार सबसे पहले पवन को प्राप्त होता है। पवन तत्क्षण अपने तेवर बदल कर मौसम के अनुकूल अपना साफ़ा लहराने लगता है। सर्दी की विदाई की चिट्ठियाँ गेंदे के कत्थई फूलों के साथ समीर ज्यों ही बाँटना शुरू करता है सबसे पहले बेघरों को राहत मिलती है। सड़क के किनारे जर्जर फ़ुटपाथों पर मुस्कानें भले मैली-कुचैली हों , लौटने लगती हैं। ठंडे पड़े उनके चूल्हों में आग रुक कर गुनगुनाने