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Showing posts from December 15, 2022

गमले भर ज़मीन

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दादी ,  नानी ,  माँ , सास ये स्त्रियाँ नहीं हमारी ज़मीनें थीं अंदर से उर्वर , बाहर से बंजर ये हमेशा अपनी ज़मीन तैयार करने में लगी रहीं पर ऐसी ज़मीन तलाश नहीं पाईं जिस पर उगा सकतीं अपनी इच्छाओं के गुलाब ऐ हवा ऐ चिड़िया ऐ आसमान ऐ बरसात जो भी मुझे सुन रहा हो कर देना खबर ज़रा उन स्त्रियों को कि हमने गमले भर ही सही अपनी जमीन तैयार कर ली है वे नहीं बो सकीं जो फसलें उन्हें हमने बोया है उनकी अखोजी ज़मीनों का पता मिल चुका है हमें उन्हें तसल्ली होगी हमारे होने में क्योंकि जीने-मरने से ज्यादा   ज़रूरी है   मुक्त होना अब हम उन्हें, मुक्त होते देखना चाहते हैं।  

मौन में मुस्कुराहटें

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दिसंबर चला जायेगा संसार का आँगन छोड़ फिर भी छूट जायेगी उसकी सुगंध किसी नीम के झुरमुठ में इकत्तीस दिसंबर दो हाजर बाइस की धुंध भरी आवाज़ें बजती रहेंगी देर तक हमारे कानों में अपने अधूरे काम छोड़ ओवरकोट की जेब में हाथ रखे दिसंबर जब चला जायेगा कभी न लौटने के लिए तब जनवरी सम्हालेगा लेथन विगत वर्ष की नए प्रेमी की तरह मौन में मुस्कुराहटें समेटे फिर भी हम यही कहेंगे कि छोड़ना कठिन है नई प्राप्ति से।