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पुरानी धुन में

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  आज की भोर  फ़िर दिखी उठाए बादलों को अपनी गोद में आकाश होने को  आतुर भोर ने छोड़ दिए कई दृश्य अनदेखे अटके थे जो जंगली घास पर प्रेम की तलाश में पंछियों ने गाए गीत चुग्गीले टहनियों ने ली अंगड़ाई तो पखेरुओं को मिली उड़ान उनके मन की पत्तियों ने फिर झुककर निहारा वृक्ष के तने को जड़ें पसर गईं थोड़ी और गहराई तक धरती ने उठाया दिशाओं को कंधे पर तो सूरज ने पूर दिए चौक नारंगी क्षितिज अटारी पर और लटक गया पनिहारी के घूंघट पर शब्द ने छुए होंठ उसके मौन जल को मिल गई वजह तरल होने की हवा ने बांट दी ध्वनियां मद्धिम याकि तेज़ एक- दूसरे के कानों तक मानवीय भावनाओं को मिली ताज़गी तो चल पड़ा संसार पुरानी धुन में |  ***