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Showing posts from September 21, 2020

सफल उड़ानों में सपनों के रंग

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अभी भोर होना बाकी है। कालिमा  इधर-उधर  छितराई है। धरती सो रही है सुख की नींद लेकिन उसके आँगन में खड़े स्ट्रीट लैम्प अपलक किसी टॉर्च मैन की तरह अपनी निष्ठापूर्ण नौकरी में मग्न हैं । कितना जरूरी होता है अपने कर्तव्यों में निमग्न होना फिर चाहे कोई हमें देखे या न भी देखे। लैम्पों से झरती रौशनी के कारण दूब घास पूरी तरह से ओस से नहा नहीं सकी है  |  इसे देखते हुए लगा कि रौशनी के इन दीयों ने शहर को उजाला तो सौंपा है किंचित रूखा-सूखा भी बना दिया है इसे  |  ये बात इस लिए कह रही हूँ कि इस भागते-दौड़ते महानगर में अभी भी कुछ स्थान रात के सन्नाटे और अँधेरे की रजाई में पूरी तरह दुबक कर सोते हैं  |  जब कभी उन जगहों पर जाने को मिला तो उनका लालित्य देखते ही बना|  उसको देखकर लगा मानो सुबह की थाली में प्रफुल्लित मन लुच-लुच  गेंदे के फूल रखे हों  |  खैर आज की बात करूँ तो लगता है कि हवा छुट्टी पर गयी है;  तभी तो वृक्षों की डालियाँ , अभी  चार बजने को हैं और वे सो रही हैं  |  पत्तियाँ हिलना-डुलना भी चाहें तो सिवकाई में खलल पड़ेगी इसलिए वे भी नतनयन किये डालियों से चिपकीं सोने का अभिनय कर रही हैं  |  पंछियों के घो

तुम कब आओगे

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हरसिंगार झरने का मौसम आया है तुम कब आओगे लिख देना||   पलकें उठा झाँकती है जब भोर कुहासी खिल उठता सोया कनेर आँखें मदमाती   ओस भरी चितवन को मौसम भाया है ।।                                      भीगा-भीगा आँगन है मन का कोना भी बिटिया का गौना है और चने बोना भी   फ़सल गोड़ने-बोने का मौसम छाया है ।।   ठिठक-ठिठक कर चलता सूरज आसमान में सिहरन भर लाती है                          सन्ध्या नित्य गान में गमलों में गेंदों का मौसम आया है ।। ***