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एक टिप्पणी

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  " कब तक सूरजमुखी बनें हम" पर एक छोटी सी चर्चा ____________________________________ प्रस्तुति टिप्पणी  मनोज जैन के द्वारा... चर्चित कवयित्री कल्पना मनोरमा जी का सन 2019 में लोकोदय प्रकाशन से मुद्रित एवं प्रकाशित गीत-नवगीत संग्रह "कब तक सूरजमुखी बनें हम" इस समय मेरे हाथों में है यद्धपि यह पुस्तक मेरे पास 7 जनवरी 2020 से है और इसे पहले पढ़ चुका हूँ।आज पुनः कुछ लिखने पढ़ने के लिहाज से मैंने संग्रह के पन्ने उलटने शुरू किए संग्रह में लगभग आठ दर्जन से भी अधिक गीतों को पढ़ा जा सकता है। पूरे संग्रह की रचनाओं से गुजरते हुए मुझे दो एक बातें रेखांकित करने योग्य लगीं कल्पना मनोरमा जी ने सृजन के क्षणों को पूरी ईमानदारी के साथ पकड़ने की कोशिश की है।कवयित्री की रचनाएँ बनावट और बुनावट में नितांत मौलिक हैं।विषय वैविध्य के मामले में कल्पना जी धनी हैं। एक बात और कवयित्री जहाँ एक ओर नूतन सन्दभों को आम बोलचाल की भाषा में पिरोने में सिद्ध हस्त हैं तो वहीं दूसरी ओर रचना में उठाये गए विषय के निर्वहन में कल्पना जी को छायावादी शब्दावली और कथ्य के उपयोग से भी परहेज नहीं है। सार संक