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नीले मूँगे-सा आसमान

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2020 अक्टूबर महीने का नीले मूँगे-सा आसमान मानो कह रहा है कि तुम बने रहो डर की आगोश में मैं तो जी भरकर चमकूँगा। " लो मैं तो आ गयी हूँ पूरी साज़-ओ-सामान के साथ क्षितिज पर ", ठंडी ने खुल्मखुल्ला ऐलान कर दिया है। सर्दी की पतली-सी चादर वातावरण पर पसर चुकी है। धरती पर सूरज की तपिश फीकी पड़ने लगी है। जैसे नरमता के आगे अक्खड़पन ढीला पड़ने लगता है। हवा में गज़ब की स्फूर्ति भर चुकी है। अलस्सुबह की सैर भोर की देह में झुरझुरी भरने लगी है। यमुना की धारा शीशे की तरह से ना सही , तेली के परनाले की शक्ल छोड़ नहर के जल की तरह हो चली है। कालिंदी के बदलाव की खबर हमें हवा के वे झुके झौकें दे रहे हैं जिन्होंने उसके जल को स्पर्श किया है। झुक-झुक कर उसको छूते हुए  आते हवा के झोंकों की अठखेलियाँ देखते ही बन रही हैं। इन दिनों शाम को जब दिनकर शहर से विदा लेता है तो पश्चिम दिशा में धरती से लेकर क्षितिज तक एक सुनहरी बीम-सी बनती हुई दिखाई पड़ती है। ऐसे दृश्य कभी बचपन में देखे थे । यमुना  के जल में सुनहरी कंपन को देखा जा सकता है। उसके जल की सतह पर वृक्षों की पड़ती परछाइयाँ नदी की तरलता पर मुग्ध हो मुस्कुराती हैं