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कोरा मन: लोरी की गूँज

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                                      बुनियादी चिन्तन : बालिका से वामा आज के रविवारीय में  यह लेख 'लोरी' के बहाने स्त्री-चेतना के निर्माण और उसके सांस्कृतिक संस्कारों की पड़ताल करता है। इसमें यह दर्शाया गया है कि माँ की लोरी केवल एक भावनात्मक ध्वनि नहीं, बल्कि बालिका के 'कोरे मन' पर पड़ने वाली पहली वैचारिक छाया होती है। लेख यह प्रश्न उठाता है कि क्या पारंपरिक लोरियाँ बालिकाओं को सीमित और आज्ञाकारी स्त्री बनने के लिए प्रशिक्षित कर रही हैं। बाल मनोविज्ञान, स्त्रीवाद और भारतीय दर्शन को आधार बनाकर यह विचार रखा गया है कि लोरी भी conditioning का माध्यम बन सकती है। लेख का आग्रह है कि आज की माँ अपनी लोरी में स्नेह के साथ-साथ बौद्धिक और नैतिक चेतना भी पिरोए। ऐसी लोरी जो बच्ची को सिर्फ सुलाए नहीं, बल्कि भीतर से जगाए और उसे साहसी, जागरूक और विवेकशील बनाए। लेख का निष्कर्ष यह है कि ‘नाद’ यदि सृजन है, तो लोरी भी भविष्...