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Showing posts from March 6, 2023

माँ बच्चों का बसंत

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माघ में ब्याह कर  पिता के घर आई माँ  फागुन में  पतझड़ की चपेट में आ गयी  तब से कई बसंत गुजर  चुके हैं  उसकी देह से  एक कली न फूट सकी  जब माँ में ख़ुशी का  एक भी कल्ला नहीं फूटा तो इस भौतिक संसार में  बंसत की चाल सिखाने से  वंचित रह गई  एक स्त्री  दूसरी स्त्री को  माँ बच्चों का बसंत होती है अगर माँ नहीं  खिले  तो बच्चे भी पूर्ण नहीं खिलते  और इस तरह  रह जाते हैं   कुनबे बेरंग  भरे बंसत में ... ! ***

कोई भी अपेक्षा

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  मिल सको तो प्रेम तुम उस ठौर मिलना हो नहीं जिस ठौर कोई भी अपेक्षा।।   मत उलझना प्रेम की बेसुध लिखावट में और ना पतझड़ सरीखी खड़खड़ाहट में मौन छाना क्षितिज पर , फिर लौट आना सूर्य के आलोक में ले धूप सी प्रेमिल तितिक्षा।।   हो सके तो हर छुअन से मुक्त रहना पर नहीं करना किनारा , हवा-से नजदीक बहना फूल को भी लग सके ना चोट लेकिन पर सुगंधित ओज लेकर लौटना बनकर शुभेच्छा।।   पुलक में हंसना खुशी में साथ देना पर नहीं प्रतिदान में मन को लगाना जलज में जल है मगर दिखता जलज ही प्रेम तुम सम्पूर्ण की करना समीक्षा।।