माँ बच्चों का बसंत
माघ में ब्याह कर
पिता के घर आई माँ
फागुन में
पतझड़ की चपेट में आ गयी
तब से कई बसंत गुजर चुके हैं
उसकी देह से
एक कली न फूट सकी
जब माँ में ख़ुशी का
एक भी कल्ला नहीं फूटा
तो इस भौतिक संसार में
बंसत की चाल सिखाने से
वंचित रह गई एक स्त्री
दूसरी स्त्री को
माँ बच्चों का बसंत होती है
अगर माँ नहीं खिले
तो बच्चे भी पूर्ण नहीं खिलते
और इस तरह रह जाते हैं
कुनबे बेरंग भरे बंसत में ... !
***
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०९ -०३-२०२३) को 'माँ बच्चों का बसंत'(चर्चा-अंक -४६४५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteअद्भुत!! संवेदनाओं से सज्जित हृदय स्पर्शी रचना।
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