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Showing posts from August 13, 2022

स्त्रीकथा

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२०२२ आज़ादी के अमृत महोत्सव पर  " अजी हमने सुना है कि आज़ादी का अमृत महोत्सव बड़े ज़ोर शोर से मनाया जा रहा है ?" कुंती बोली।   " दीदी , आज़ादी होती कैसी है ?" बेला ने भवें तानते हुए पूछा।   " हम में से बहुतों को आज़ादी का ' आ ' तक पता नहीं और चली हैं आज़ादी होती कैसी है ? पूछने , हुंह। कमली ने घूँघट नाक तक सरकाते हुए चिढ़ाने के भाव से कहा और तुनक कर साड़ी दांत से दबा ली। महिला महफ़िल में शांति छा गयी।   " अरी! सुगना तू तो अभी-अभी शहर से लौटी है। मुझे भरोसा है कि तू आज़ादी के मायने क्या होते हैं ? बता सकती है। ऐ सुग्गू , बता न! आज़ाद होकर कैसा-कैसा लगता है। " बिमली ने माहौल को त्वरा देते बोली और पाँव के अंगूठे से ज़मीन की मिट्टी खुरचने लगी। " वह देखो ?" " क्या देखें ?" " अरे वही , आज़ादी! " सुगना सगर्व बोली। " कहाँ है ? मुझे तो ये कभी दिखी ही नहीं। " कुन्नू अपने दुधमुहाँ बच्चे को छाती से हटाते हुए बोली। " अरे भई! वह जो मचक-मचक झंडा उठाए चली जा रही है , वह आज़ादी ही तो है। कमाल करती ह