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जुगनुओं की तलाश में

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कल्पना मनोरमा & यशवर्धन वाजपेयी  चाँदनी फीकी, हवा भी थमी सी है चाँद की आँखों में कुछ नमी सी है।। *** निकला है चाँद लंबे अरसे के बाद चेहरे पे उसके हँसी जमी सी है।। *** रात भर सुनता था किस्से नानी से बिखरे लम्हात में पसरी गमी सी है।। *** निकलता है कौन बिखेरने को उजाले, थमे हुए मौसम में चहल कदमी सी है।। *** जुगनुओं की तलाश में चाँद मिला, फिर भी लगता है, कोई कमी सी है।। यशवर्धन वाजपेयी