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Showing posts from June 19, 2020

शब्द आलोक

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बच्चों ने आज प्रसन्ना से अतरंगी खाना खाने की इच्छा जताई थी । उनकी डिमांड पर प्रसन्ना थोड़ी परेशान हुई लेकिन अचानक ही उसके मानस पटल पर हमेशा की तरह एक नई युक्ति चमक उठी । वह जल्दी से दौड़ती हुई रसोई में जा पहुँची । बर्तनों के ढक्कन उठाकर देखा तो दोपहर के खाने में बनी   चने की दाल  , केले की सब्जी ,  भरवाँ भिंडी और चावल ,  सभी कुछ थोड़ा-थोड़ा डोंगों में बचा पड़ा था ।उसने जल्दी से एक कटोरी सूजी को घी में भूना और दो हरी मिर्च , दो प्याज़ और धनियाँ बारीक-बारीक करता ; सभी सामग्री को एक साथ गूँथकर कटलेट तलने लगी । इतने में बच्चे भी रसोई में दौड़े हुए चले आये । " क्या कर रही हो मम्मा ,  बताओ न ?" " कुछ खास नहीं ; बस तुम लोगों के लिए कुछ अतरंगी बनाने की कोशिश रही हूँ।" " मम्मी ,  इस डिस का नाम क्या है  ?"   प्रसन्ना की मझली बेटी गिन्नी उछलते हुए बोली । " नाम तो मुझे पता नहीं लेकिन इसका स्वाद जरूर तुम्हारी जुबान पर चढ़ जायेगा।" कहते हुए उसके चेहरे पर थोड़ा अहम-सा उभर आया था। " मम्मी ,  आप ये कैसे कह सकती हो … ?" " क्योंकि ये मेरी क्रियेशन है ,  इ

नब्बे की अम्मा

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नब्बे सीढ़ी उतरी अम्मा मचलन कैसे बची रह गई।। नींबू,आम ,अचार मुरब्बा लाकर रख देती हूँ सब कुछ लेकिन अम्मा कहतीं उनको रोटी का छिलका खाना था दौड़-भाग कर लाती छिलका लाकर जब उनको देती हूँ नमक चाट उठ जातीं,कहतीं हमको तो जामुन खाना था।। जर्जर महल झुकीं महराबें ठनगन कैसे बची रह गई।। गद्दा ,तकिया चादर लेकर बिस्तर कर देती हूँ झुक कर पीठ फेर कर कहतीं अम्मा हमको खटिया पर सोना था गाँव-शहर मझयाये चलकर खटिया डाली उनके आगे बेंत उठा पाटी पर पटका बोलीं तख़्ते पर सोना था बाली, बल की खोई कब से लटकन कैसे बची रह गई।। फगुनाई में गातीं कजरी हँसते हँसते रो पड़ती हैं पूछो यदि क्या बात हो गई अम्मा थोड़ा और बिखरती पाँव दबाती सिर खुजलाती शायद अम्मा कह दें मन की बूढ़ी सतजुल लेकिन बहकर मन से मन तक खूब बिसुरती जमी हुईं परतों के भीतर विचलन कैसे बची रह गई? -कल्पना मनोरमा 18.6.20