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यादों का एक झोंका

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जहन में एक गाँव हमेशा रहता है जिसमें न बिजली थी न अस्पताल था न पाठशाला थी न रेल गाड़ियों की आवाजाही न बसों की चीख-पुकार उस गाँव में केवल वृक्ष रहते थे अपने मित्रों और रिश्तेदारों के साथ एक बंबा था चार-पाँच पोखर थे  थे उसी से जुड़े कई एक कूल किनारे उस गाँव का लोक जीवन भ्रमित नहीं था वह अपने पुण्यों में फलित था   प्रकृति के लालित्य में   मचलती हुई हरियाली तीज ले आई वहीं से पुरवा हवा   यादों में डूबा एक झोंका   आज मेरी खिड़की में। ***