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Showing posts from October 2, 2022

हरसिंगार वाले दिन

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हरसिंगार वाले दिन माने, मेरे बचपन का हरा उमंगित रंग ,  उत्सव की समृद्धशाली गमक , माँ का गीला स्नेह , सपनों का मोहक संसार ,  शाम ढले पखेरुओं की कतारें में पंछिओं को गिनने की खुद से होड़, प्रकृति के सानिध्य की परिकल्पना में निजता पुष्पित होने का प्रतिक है।  आज भी जब हम कंक्रीट के जंगल में समय बिताने के लिए मजबूर हैं तब भी हर वर्ष अश्विन मास की आबोहवा में जो सौंधापन घुलकर मेरे पास तक चला आता है, वह हमारी जड़ों द्वारा सोखी हुई ताजगी है जो कभी सूखती नहीं । यह समय  दुर्गा माँ की मर्यादाओं का घंटनाद  वातावरण में व्याप्त कर स्त्री की भूमिका को चौमुख दीया जैसा दमका जाता है। बरसाती मन निर्मल पवन की तरह उल्लासित हो स्मृतियों की भूमि पर चुए हरसिंगार चुनने दौड़ पड़ता है । हरसिंगार के फूल रात की आँखों में फूले प्रकृति के सपने होते हैं, जो सूरज की पहली किरण पर पृथ्वी पर बरसकर अरुणोदय को अपना श्वेतवर्णी आह्लाद  सौंप देता है  और पवन के दुपट्टे पर इत्र की नरम फ़ुहार छिड़क कर अपना जीवन धन्य बना लेता है । इस मौसम में क्षितज का पसीजना शुरू होना और वनस्पतियों को ओस का मिलना ऋतु आगमन की  ख़ासियत बन जाती है। आम बा

हम किसी भी तरह बच जाना चाहते हैं

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    विदाई के वक्त मन भारी न हो तो वह मन कैसा ? मन प्रेम में पिघल कर आँखों के रास्ते बहे नहीं तो वह प्रेम कैसा? जब प्रेम में विरह फूटता है तो प्रेम की जड़ें कानों के आसपास अँखुआती हुईं महसूस होती हैं। हृदय की दीवारों को प्रेम का स्फुरण धीरे-धीरे प्रेमी को भिंगोता हैं--- जैसे बरसात की नरम फुहारें किसी मिट्टी के घर को भिंगोती हैं। मन की डाल पर देखते ही देखते प्रेम का फल नहीं लगता। पहले आँसुओं की लड़ियाँ गालों को भिगोते हुए तसल्ली से किसी एकांत पल में प्रेम के बिरवे को सींचती हैं तब कहीं कोई कली चटखती है। प्रेम की कली कपास की नहीं कमल की तरह होती हैं ।   प्रेम प्रेमी को चीखने कहाँ देता है? अगर प्रेम प्रेम कर कोई चीखता फिरे तो वह प्रेमी कैसा? प्रेम के आँसू गाढ़े होते हैं। वे ज्यादा देर बहते नहीं, आँखों के किनारों पर चिपक जाते हैं मौन। जैसे रात का स्याह अँधेरा किसी की आँख का काजल नहीं बनता पर प्रकृति की ऊँच-नीच छिपाकर समता भर देता है। उसी तरह धूप को कूट-पीटकर गहने में नहीं ढाल सकते पर धूप पिए गेंहू ही हमें पोसते हैं। गगनचुंबी टहनियों पर टांग भले दो मन को पर हवा के झोंके उसे उड़ा नहीं सक