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डॉ. कृष्णा श्रीवास्तव से कल्पना मनोरमा की बातचीत

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डॉ. कृष्णा श्रीवास्तव के साथ कल्पना मनोरमा  कल्पना : आपका नाम कृष्णा न होता तो क्या होता ? कृष्णा : इस पर कभी सोचा नहीं , जो नाम मिला वही अच्छा लग गया। माता-पिता के दिए नाम के सिवा कोई दूसरे नाम का खयाल भी जेहन मे नहीं आया। आखिर नाम में रखा ही क्या , व्यक्ति का काम देखा जाता है सो हमेशा विचारों में रमा रहा। कल्पना:   आप अपने बचपन , पारिवारिक परिवेश , प्राथमिक शिक्षा और भाई-बहनों के विषय में कुछ बताइए । कृष्णा : बचपन की बातें तो सुनी सुनाई होती हैं। अम्मा बताती , बचपन में बहुत शैतान थी। मौका पाते ही घर से भाग जाती इसलिए मेरी दीदी ने एक रुमाल में बाबूजी का नाम व पता लिखकर मेरी फ्रॉक के साथ लटका दिया था। वही रूमाल फिर हर फ्रॉक के साथ लटका दिया जाता था जिससे उस छोटी जगह में बैंकबाबू की बिटिया देख कर कोई भी बैंक में लाकर मुझे जमा कर देते थे। फिर वहाँ से मेरा घर आना आसान हो जाता था। एक याद और है , बचपन में मैं और मुझसे बड़े भाई बीमार पड़े , चेचक निकली थी , मेरी हालत बिगड़ गई। हकीम कहने लगे , अब यह नहीं बचेगी , इसे जो कुछ खिलाना हो खिला-पिला दो। ठीक   होने पर हकीम साहब ने मुझे अल्ला र