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नया साल मुबारक हो मित्र!

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चित्र : रोहित जी रूसिया  नए साल के पहले दिन का  अनछुआ-अनूठा पहला मिनट पहली बार किसी स्त्री का सुनना कि वह पेट से है  अंडे से निकलकर चूज़े का पहली बार  पंख हिलाकर उड़ान जाँचना समुद्र से निकलती  सूरज की पहली नारंगी किरण हिमालय की गोद से नदी की पहली  निर्मल छलांग दांपत्य जीवन को ओढ़ने वाले  किसी युगल के लिए  मंडप के नीचे सहभागिता मन्त्र के साथ  पहली भाँवर में पहला पाँव बढ़ाना  किसान के हल की फाल का पहली बार खेत को भीतर से छूना बीज से अँकुरित अंकुर का  पहली बार  नीले आकाश को देखना  गुलाब की डाली पर खिलने को आतुर  पाँखुरी की पहली चटकन  भूखे व्यक्ति के मुँह में गया  पहला निवाला  एक पिता को पहली बार पुत्र को  ज़िम्मेदारी सौंपना कन्या के पहले मासिक धर्म की सूचना  माँ के कानों में पहली बार पड़ना  नए शब्द का पढ़ने की देरी भर नया रहना   रहता है नया उतनी ही देर जितनी देर  उस पहले पल के जीवन में घटित  अवधूत विस्तारित मौन का पहला क्षण और फ़िर पलक झपकते उसका पुराना हो जाना  हम देखते रह जाते हैं उम्र भर  पुरानापन इस क़दर नए को खींचता है  अपनी ज़द में कि भूल जाती है नवता  अपना नयापन   आने वाला नया साल भी  सज रहा