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Showing posts from June 19, 2022

लैटर बॉक्स!

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बीसवीं सदी में कभी लैटर बॉक्स! ये डिब्बा सिर्फ़ डिब्बा न होकर सुख और दुःख बाँटने वाला देव दूत माना जाता थ। जब से इसका जन्म हुआ होगा इसने बड़े निर्लिप्त भाव से अपनी ओर लोगों के बढ़ते हुए हाथों को और ताकते हुए हज़ार-हज़ार आँखों को देखा होगा। घुड़सवारों के हाथ संदेश पहुँचाना, कबूतरों के पंजों में चिट्ठियाँ बाँधकर अपने प्रिय तक संदेश पहुँचाना, लैटर बॉक्स वाली प्रक्रिया से निश्चित ही दुरूह रही होगी। तभी किसी ने सही कहा है कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है। इस डिब्बे के बारे में कितनी सुंदर कल्पना की होगी किसी ने। खैर अब अगर डिब्बे की मन की बात कहें तो जब इसका पेट चिट्ठियों से भर जाता था तो कभी-कभी पत्रों के ताप से इसका माथा तपने लगता था। राजनैतिक पत्रों से इसे बदहजमी जैसी शुबा होने लगती और प्रेम पत्रों से जब इसे गुदगुदी होने लगती थी तब ये चाहता था कि कब पोस्टमैन आए और ताला खोलकर इसका मन हल्का कर जाए। वैसे ताला खोलने का इंतज़ार सिर्फ़ इसे ही नहीं , लोगों को भी बड़ी बेसब्री से हुआ करता था। और जैसे ही लाल डिब्बे का दरवाजा खुलता था डाकिया बाबू डाक को काँधे पर लटकाकर चल पड़ते थे। जिसका ज

तुम प्रमुख हो पिता

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  भोर के सांवले धुंधलके में आज़ भी जब खुलती है  अलसाई आँख मन तुम्हारे पास ही दौड़ा चला जाता है पिता! सिर्फ़ एक बात कहना चाहती हूँ जिस तरह हमारे हाथों से अनछुआ बचा रह जाता है नीला आसमान ठीक उसी तरह तुम क्यों प्रतीत होते हो पिता! जबकि तुम तो ज़मीन पर सदा हमारे पास होते हो पिता ! फिर भी...........! पर कुछ भी हो जाए हमारे होने में तुम प्रमुख हो पिता !! ...