तुम प्रमुख हो पिता
भोर के सांवले धुंधलके में
आज़ भी जब खुलती है
अलसाई आँख
मन तुम्हारे पास ही
दौड़ा चला जाता है
पिता!
सिर्फ़ एक बात
कहना चाहती हूँ
जिस तरह हमारे हाथों से
अनछुआ बचा रह जाता है
नीला आसमान
ठीक उसी तरह
तुम क्यों प्रतीत होते हो
पिता!
जबकि तुम तो ज़मीन पर
सदा हमारे पास होते हो
पिता !
फिर भी...........!
पर कुछ भी हो जाए
हमारे होने में
तुम प्रमुख हो पिता !!
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