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Showing posts from June 1, 2022

स्वर्ग का अंतिम उतार

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  “ स्वर्ग का अंतिम उतार ” डॉ. लक्ष्मी शर्मा जी की उपन्यासिक कृति पढ़कर निवृत हुई हूँ। स्वर्ग पाने के नाम पर न जाने हम क्या-क्या करते रहते हैं। प्रत्येक संसारी जीव की ये आकांक्षा रहती है कि उसे कैसे न कैसे स्वर्ग हासिल हो। कभी-कभी जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि स्वर्ग में आख़िर होता क्या होगा ? कौन वहाँ का संचालक होगा ? कैसी वहाँ की सुख-सुविधाएँ होंगी ? क्या वहाँ भी महामहिम जनों की राजनीत- कूटनीति से लोग शिकार होते होंगे ? कितना भी उछल-कूद लो स्वर्ग के छज्जे से झाँकने तक को नहीं मिलता। कोई नहीं जानता वहाँ की व्यवस्था और व्यस्थापक कौन और कैसा है क्योंकि वहाँ जाकर कोई आज तक लौटा नहीं है। क्या वहाँ जाकर जीव की सारी इच्छाएँ भस्म हो जाती हैं ? या जीव भ्रामक हो चकरघिन्नी बन वहीं का वहीं डोलता रह जाता है ? हालाँकि बड़े-बड़े चिन्तक और विचारक ये भी कहते हैं कि स्वर्ग-नर्क सब कुछ यहीं इसी पृथ्वी लोक पर हैं और हम प्रतिदिन उनसे रूबरू भी होते रहते हैं लेकिन स्वार्गिक स्वाद से अनभिज्ञ होने के कारण अछूते ही रह जाते हैं। इस तरह स्वर्ग पाने की लालसा में फँसा जीव एक पल को भी सुकून से नहीं जी पाता है।   लेखिक

तुम भरो उड़ान

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आई. ए. एस. श्रुति शर्मा अपनी माँ के साथ  तुम हँसो! कि मैं सहेज लूँगी तुम्हारी खुशी अपने सूखे होठों पर तुम बढ़ो आगे! कि मैं छिपा लूँगी तुम्हारी नासमझ भूलों को अपनी समझदार हँसी के पीछे तुम्हारे पद-चिन्हों में मिला दूँगी थकी चाल अपनी साँझ-किरण के आलोक में खोलकर तुम्हारे बचपन के डिब्बे से निकाल लूँगी तुम्हारे कहे  तोतले शब्द  जो तुमने कहे थे दूध-भात से सने होठों से जिनकी बसावट से महकते हैं आज भी थरथराती नींदों के  मेरे सपने कामयाबी की भोर में सहेजे रखना तुम अपनी संघर्ष भरी रातें वक्त का नन्हा टुकड़ा भी  संघर्ष वाला    करेगा उजाला जानदार चिंगारी की तरह तुम्हारे नीम अंधेरों में  किसी अबूझे पल में तुम ठिठकोगी  किन्तु ढूंढ लोगी झट से अपने और मेरे लिए नया उजाला   जब होंगे तुम्हारे दिन  व्यस्ताओं से भरे  तब में करूंगी  तुम्हारे उस नाइट लैंप से बातें जो सहभागी होता था कभी  तुम्हारी एकांत रातों का  जिसने देखी हैं तुम्हारी थकन भरी फुसफुसाहटें  जिसे तुम बहलाती थीं दिल अपना    तुम खोलो पंख अपने की क्षितिज पर सुखाई है मैंने वही पीली