मैं पेड़ होना चाहती हूँ
मन यूँ करता है अब कि कुछ दिन ही सही न भूख लगे, न प्यास की उठे कोई पुकार देह अपना बोझ ख़ुद ही उतार कर फेंक दे और मैं सिर्फ़ स्वांस भर रह जाऊँ न बच्चों को चुगाने की चिंता हो, न समय के दाँत काटने का डर यह इनकार नहीं है जीवन से, बस पल भर के लिए शोर से बाहर आना चाहती हूं मैं उस पेड़ पर रहना चाहती हूँ जहां जड़ें उसकी हों, और भरोसा मेरा जहाँ हर प्रश्न का उत्तर फल की तरह नहीं, छाया की तरह उतरे मेरे भीतर मैं किताब में खोना चाहती हूँ अक्षरों के बीच अपना नाम भूलकर पन्ने पलटते हुए सबसे बुरी कथा की किरदार बन पाठकों की आँखों में झांकना चाहती हूँ चिड़ियों से बातें करना चाहती हूँ— बिना अर्थ का बोझ ढोए जो जानती हैं चिड़ियां सीखना चाहती हूँ और उन्हें बताना चाहती हूँ कि उड़ान कोई उपलब्धि नहीं, एक सहज आदत है हवा में उड़ना चाहती हूँ बिना दिशा,बिना मंज़िल जहाँ से लौटना अनिवार्य न हो और ठहरना अपराध न बने किसी अनजाने जंगल में खो जाना चाहती हूँ मैं ख़ुद को थोड़ी देर जीने देना चाहती हूँ मैं पेड़ होना चाहती हूँ। कल्पना मनोरमा