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Showing posts from May 20, 2021

इत्ती-सी खुशी

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  घरों की मुंडेरें हों या कॉलोनी के पेड़-पौधे , सभी पर छोटे-छोटे बल्बों की रंगीन लड़ियाँ लगा दी गई थीं। उजाले का मर्म अबोले कहाँ जानते हैं ; वे तो स्वयं उसको पाकर उत्स में बदल जाते हैं। चौंधियाती साँझ रात बनकर अपने प्रेमी, चाँद के साथ पसरने को बेताब थी  लेकिन चारों ओर बिजली का रुआब इस क़दर तारी था कि पेड़ों के हरे रंग के साथ धरती का भी रंग खिल उठा था। इस बार दीवाली आने से पहले मेरे घर का भी पता बदल गया था। भले एक कमरे का ही सही, अपना घर खरीदकर केतन ने मेरी जिंदगी को रोशन कर दिया था। किराए के सीलन भरे घर से निजात मिल चुकी थी। जिंदगी की भव्यता का छोटा-सा ही सही,मुझे पहली बार परिचय मिला था। सातवीं मंजिल पर खड़ी मैं नीचे झाँक-झाँक कर देखे जा रही थी। पार्क का मनभावन दृश्य, धूसर हो चुकी मेरी आँखों के लिऐ भोर की नरम ओस जैसा लग रहा था। पलट कर मैंने अपने चारों ओर देखा तो जल्दी-जल्दी बालकनी में पड़ीं अपनी उदास,पुरानी और बेरंग चीज़ों को धकेलकर किनारे ढक दिया। दो चार ठीक-ठीक गमलों को थोड़े-से ऊँचे पर रख दिया  ताकि आठवीं मंजिल से हम अच्छे दिख सकें। "आजकल का मूलमंत्र भीतर कुछ भी हो लेकिन  बाहर से सुं