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मानवता का अनुलोम-विलोम

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ऐसा क्या किया जाए कि स्त्री की आबरू लुटने से बच जाए ?  ऐसा क्या किया जाए कि स्त्री जात निम्नता की दीवार पर लिखी इबारत न होकर किसी बच्चे के होठों का इबादती   पहाड़ा बन जाये। और उसी पहाड़े से सीखे वह बच्चा दुनिया का क्रय-विक्रय करना। वह सीखे अच्छाई को लिखना और बुराई का सीना चाक करना। बच्चा सहेजे अपने मुँह लगे पहाड़े की तरह स्त्री की गरिमा को और उसे ये पता भी न चले कि ऐसा करके उसने सँवार लिया है अपनी ही आत्मा के भूगोल को।  बच्चा अपने अबोध बचपन से ही सत्य और अहिंसा के उस सूत्र को जाने जिसको यरवदा जेल से लिखे गए  ' मंगल प्रभात '  के आलेखों में गाँधीजी ने बताया है कि रस्सी पर चलने वाला नट जैसे अपनी नज़र सीधी रखकर सावधानी से लक्ष्य प्राप्ति को आँखों में लिए चलता है ,  सत्य और अहिंसा की डोर पर चलने वाले की स्थिति भी वैसी ही होनी चाहिए बल्कि इन दो तत्वों से बनी डोर तो और भी सूक्ष्म होती है। ज़रा-सी असावधानी हुई नहीं कि गये मानवता के पावदान से फिसलते हुए हजारों मील गहरी खाई में। हिंसा का अर्थ किसी को मारना तो है ही   कुविचार मात्र भी हिंसा है। उतावलापन हिंसा है। मिथ्या भाषण हिंसा है। किसी के