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Showing posts from August 24, 2020

याद हमें हो आई घर की

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  उड़ने लगीं हवा में तितली  याद हमें हो आई घर की ।।   जिसको अपना समझ-समझकर   लीपा -पोता बहुत सजाया   रहा न अपना एक घड़ी वह   धक्का दे मन में मुस्काया     देर हुई घिर आई साँझा   याद हमें हो आई घर की।।   चली पालकी छूटी देहरी   बिना पता के जीवन रोया   अक्षत देहरी बीच धराकर माँ ने अपना हाथ छुड़ाया     चटकी डाल उड़ी जब चिड़िया  याद हमें हो आई घर की।।   पता  मिला   था जिस आँगन का उसने भी ना अंग लगाया   राजा -राजकुमारों के घर जब सोई तब झटक जगाया   तुलसी बौराई जब मन की याद हमें हो आई घर की।।   ***