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Showing posts from August 15, 2022

गाँव की माटी और पीढ़ियों के दर्द की कहानियाँ

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कृति : अलगोजा  लेखक: जयराम सिंह गौर  समीक्षक: कल्पना मनोरमा  प्रकाशक: भावना प्रकाशन  मूल्य:  395 /- हिंदी कहानी का उद्भव और विकास न हुआ होता तो शायद सामाजिक परम्पराएँ समय की किसी करवट में सो कर विलीन हो जातीं। हम अपनी पीढ़ियों की परम्पराएँ क्या युक्तियां भी अपनी अगली पीढ़ी को न बता पाते। उद्भव और विकास के सूत्र निबन्ध में मधुरेश जी लिखते हैं ,” ब्रिटिश शासन के बाद भारतीय समाज की मूल चिंता अपनी परम्परा और संस्कारों के संरक्षण के रूप में दिखाई देती है। विचारों की लड़ाई के लिए गद्य ही उपयुक्त माध्यम बन सकता था। ” कहने का तात्पर्य कहानी एक पारम्परिक बोधगम्यता को धीमी गति से पीढ़ी दर पीढ़ी कहती चलती है। जयराम सिंह गौर जी से मेरा परिचय सन २०१९ जून को अपनी पुस्तक ’ कबतक सूरजमुखी बनें हम ’ के लोकार्पण में हुआ था। आपने अपनी तमाम व्यस्तताओं को नकारते हुए कार्यक्रम में शामिल होकर मेरा मनोबल बढ़ाया था। खैर , मैंने आपको बहुत तो नहीं पढ़ा लेकिन फेसबुक के माध्यम से टुकड़ों में ही सही आपके सृजनात्मक विचारों से अवगत होती रही हूँ। हिन्दी साहित्य की कहानी विधा मेंं साधिकार लेखनी चलाने वाले साहित्यकार श्रीमान