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Showing posts from May 22, 2023

पारंपरिक बनाम नेगोशिएबल पेरेंटिंग

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तस्वीर इन्स्टाग्राम से साभार  " नेगोशिएबल पेरेंटिंग "  माने माता-पिता और बच्चों के बीच जीवन, प्रेम और शक्ति के प्रेमिल समीकरणों और खुरदुरे संघर्षों का उचित प्रबंधन! माने थोड़ा तुम हमारी ओर चलो , थोड़ा हम तुम्हारी ओर चलें और इस तरह एक ऐसा अनुमोदित   धरातल निर्धारित करें जहाँ ठहरकर अभिभावक और शिशु दोनों खुलकर साँस ले सकें। दोनों अपने-अपने जीवनानुभव के क्षेत्र में मुक्त कंठ से एक दूसरे की सराहना कर सकें और दैहिक-मासिक  ‘ स्पेस ’  में अपने होने का उत्सव मना सकें। जिन परिवारों में अभिभावकीय तादात्म के स्थान पर तनाव व तानाशाही रहती है , वहाँ पलने-बढ़ने वाले शिशु डरे-सहमें जीवन को निमित्त बनाकर तनावपूर्ण संस्कारों को अपना आलंब बनाते हैं और जब वे शिशु पूर्ण मानव के रूप में समाज में विहार करते हैं तब उनके सानिद्ध्य में आने वाले क्लेश को प्राप्त होते रहते हैं।   प्रेम-सद्भावना में पोषित शिशु चंदन वृक्ष की तरह होता है। जिसके नजदीक जाना माने शीतलता की परिधि में घुसना है। जिस घर में दिन के समस्त पहरों में अभिभावकीय   निर्देशित स्वर गूँजता रहता है , वहाँ   नज़रों की आड़ लेकर मनमानियाँ और दुःख क

जीवन और प्रकृति की मौलिकता लिए कविताएँ

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  समीक्षा प्रियवंदा पाण्डेय पुस्तक-----नदी सपने में थी (काव्य संग्रह) कवयित्री कल्पना मनोरमा प्रकाशक---भावना प्रकाशन मूल्य 250 रचना प्रक्रिया से गुजरते हुए कवि/कवयित्री का जीवन के विविध प्रसंग से गुजरना अति स्वाभाविक बात है। सर्जक का मन कहीं प्रकृति के लावण्य पर रीझा हुआ जीव हो जाता है , तो कहीं स्वयं उसका अंग। मूर्त से अमूर्त का साक्षात्कार भी कोई सहृदय कवि ही करा सकता है। जीवन और प्रकृति में जितनी विभिन्नता और मौलिकता है , वैसी ही विविधता और मौलिकता के दर्शन मुझे *नदी सपने में थी*काव्य संग्रह को पढ़कर समझ में आई। आरम्भ से अंत तक पुस्तक का पाठक को स्वयं में बाँध लेना उसकी रंजकता की कहानी कहने को पर्याप्त है। कवि का मन जब लोक वेदना से जुड़ता है , कविता बंधनमुक्त होकर फूट पड़ती है। वह विसंगतियों के प्रवाह में कभी रोता , कभी हँसता , कभी क्षुब्ध हो उठता है , और कविता में उसका रुदन , हर्ष और मन की क्षुब्धावस्था नाद उत्पन्न करती है। एट्स का कहना है कि---दूसरों से संघर्ष करने वाला रेहटारिक लिखता है , और अपने से संघर्ष करने वाला कविता। इस कथन के आलोक में भी देखा जाए तो कवि म