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Showing posts from August 1, 2025

कवि-कथानटी सुमन केशरी से कल्पना मनोरमा की बातचीत

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  सुमन केशरी से यह संवाद मात्र साक्षात्कार नहीं, एक रचनाकार की आत्मस्वीकृति है। सुमन केशरी एक ऐसी कवि हैं, जिन्होंने निःसंकोच अनेक विषयों पर कविताएँ रची हैं। वे रामायण-महाभारत के मिथकीय चरित्रों की मूल कथा को बनाए रख कर उनमें आधुनिक चेतना भर कर समसामयिक बनाने की कला में निष्णात हैं। इसी के साथ में ठेठ आधुनिक विषयों व संवेदनाओं की भी कविताएँ रचती हैं तथा कविताओं का विश्लेषण भी करती हैं। 'कथानटी' के रूप में वे न केवल कथा कहती हैं, बल्कि उसे जीती भी हैं। यह बातचीत स्मृति, संघर्ष, प्रेम, विचार और असहमति की कई परतें खोलती है। उनके लेखन में गहन सामाजिक दृष्टि, आत्ममंथन और स्त्री-स्वर की स्पष्टता है। साहित्यिक सत्ता से टकराते हुए वे अपनी मौलिकता बनाए रखती हैं। यह वार्ता हिंदी साहित्य में स्त्री की सजग, विचारशील और जिजीविषा-भरी उपस्थिति का दस्तावेजीकरण करती है। यह एक लेखिका के सतत संघर्ष और संवेदना की गाथा है।  क.म. कल्पना मनोरमा ( संवादक  ) सु.के. सुमन केसरी    ( प्रतिसंवादक ) क.म. : आपने लिखना कब से शुरू किया? किसी की प्रेरणा से या स्वस्फूर्त। पहली कहानी/ कविता/आलोचना...

बिना बिके तुम बच नहीं सकते

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  जनसन्देश टाइम्स में आज (01.08.2025) "बिना बिके तुम बच नहीं सकते"— इस लेख में मैंने कोशिश की है समझने की कि आज बाज़ार सिर्फ चीज़ें नहीं बेचता, वह हमारी सोच, हमारे रिश्ते, यहां तक कि यादों तक को भी अपने दायरे में ले आया है।कार्ल मार्क्स और अर्जुन अप्पादुराई जैसे विचारकों की मदद से मैंने बाज़ार के बदलते चेहरे को देखा है। यह लेख जनसंदेश टाइम्स के आज के अंक में प्रकाशित हुआ है। बिना बिके तुम बच नहीं सकते                                                                                                     ...