जुगनुओं की तलाश में



कल्पना मनोरमा & यशवर्धन वाजपेयी 

चाँदनी फीकी, हवा भी थमी सी है

चाँद की आँखों में कुछ नमी सी है।।

***

निकला है चाँद लंबे अरसे के बाद

चेहरे पे उसके हँसी जमी सी है।।

***

रात भर सुनता था किस्से नानी से

बिखरे लम्हात में पसरी गमी सी है।।

***

निकलता है कौन बिखेरने को उजाले,

थमे हुए मौसम में चहल कदमी सी है।।

***

जुगनुओं की तलाश में चाँद मिला,

फिर भी लगता है, कोई कमी सी है।।


यशवर्धन वाजपेयी





Comments

  1. अरे वाह ! ओम भी लिखने लगे !👌👌👌👌गुरु माता को नमन है भाई !!

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    1. गुरुमाता तो आप ही रहोगी, दोनों की। आपको नमन 🙏🙏💝

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  2. अरे वाह , बहुत बधाई ...बढ़िया लिखा है

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  3. होनहार बाल साहित्यकार को अनंत शुभेच्छा।
    सस्नेह।
    ---
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ जुलाई २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  4. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर सृजन हेतु बधाई जव शुभकामनाएं ।

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  5. आप सभी मित्रों हार्दिक आभार

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