मिथ्या भ्रम टूटें सभी

 

चित्र- पारुल तोमर 

क्या माँगें माँ माँगना, क्या साधें जो पास

मिथ्या भ्रम टूटें सभी, यही हृदय की आस।।

 

हवा भरी है गंध से, चित्त भरा है राग

है सामग्री हवन की, नहीं पास में आग।।

 

समता-ममता खो चुकी, खाली उर आगार

 दाँव खोजते एक बस, गिरगिट-सा व्यवहार।।

 

सांध्य की आगोश में, छिप जाता जब सूर्य

पीड़ा अतिभर टीसती, बजता दुःख का तूर्य।।

 

पत्थर के परिवार को, सींचा भर-भर नेह

बदले में पाया सदा, धोबी के कर रेह।।

 

गंगा की अवतार माँ, मैं नदिया की धार

पानी दोनों एक रंग, मिल पा जाऊँ पार।।

 

भ्रम में भूला दिन फिरा, काटी डर-डर रात

पौ फटते ही बोलता, झूठी -साँची बात।।

 

गिरा आचरण कूप में, बचा सिर्फ़ व्यभिचार

अपने आगे समझते, संस्कृति को लाचार ।।

***

Comments

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१५ -१०-२०२१) को
    'जन नायक श्री राम'(चर्चा अंक-४२१८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. वाह!सुंदर और सटीक ।

    ReplyDelete
  3. हवा भरी है गंध से, चित्त भरा है राग

    है सामग्री हवन की, नहीं पास में आग।।
    बहुत ही सारगर्भित एवं सार्थक दोहे
    वाह!!!

    ReplyDelete

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