शिशु के विश्वास में

 वसंत से पहले हर बार

मिलकर मिट्टी में

लौटती हूं पेड़ के नज़दीक



नहीं मिलता पेड़ वैसा

जैसा छोड़ा था पतझड़ के मध्य

पत्तियां सोचती हैं

लालित्य अपना दिखाकर वसन्त

कोमलता छीनकर पेड़ की

फूलों में रस घोलता है

फूल, टहनियों पर खिलते हैं

पेड़, टहनियों का पिता होता है

शिशु के विश्वास में

पिता बूढ़ा ही जनमता है।

 

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