बाँस भर टोकरी- एकल लोकार्पण

समीक्षक: मित्र निशा चन्द्रा

‘बाँस भर टोकरी’ काव्य संग्रह का नाम ही इतना अद्भुत था कि किताब पकड़े-पकड़े मुझे लगा कि मैं जैसे बाँस के जंगल में खो गई हूँ। उसके बाद अपनी कल्पना में बाँस की टोकरी बुनते हुए असंख्य हाथ दिखे लेकिन जब इस संग्रह की कविताओं का पाठ किया तो लगा कि मेरी विचारी हुई टोकरी छोटी पड़ रही है। कविताएँ अपने अंतस में इतनी ज्यादा उर्वर संवेदना, अवसाद, आक्रोश को समेटने है उसके लिए सोच की टोकरी नहीं, इन कविताओं के भाव को समझने के लिए मन-बुद्धि के बहुत बड़े टोकरे की ज़रूरत थी।

सैतालीस कविताएँ जो 119 पृष्ठों तक पसरी हैं, वे जैसे कविताएँ नहीं, बाँस के पतले-पतले, हरे-भरे पत्तों से बुनी हुई अद्भुत टोकरियाँ हैं. जिनमें स्त्री-पुरुष की साँझी पीर, सुख-दुःख भरा है, जिसे अब मैंने अपने मानस में सहेज कर रख लिया है। 

उच्चस्तरीय शब्द सौष्ठव से पूर्ण मर्म को बेधती...पढ़ते-पढ़ते पाठक को कुछ देर को ठहर कर कुछ सोचने को मजबूर करती कविताएँ….कोई दारुण गाथा, कोई बसंत की आहट और कुछ स्त्री के आत्मिक प्रेम को मुखर करती कविताएँ पढ़ना जैसे अपने आप को पढ़ना है. अपने जीवन के अनुभवों को समक्ष पाना है।

इस संग्रह की कविताओं में कल्पना मनोरमा ने अपनी कल्पना के पंखों को विस्तृत आकाश देने के स्थान पर यथार्थ की बीजों को रोपा है जो कविताओं के रूप में पाठक से बतियाने के लिए मुखातिब हैं। सभी कविताएँ बड़ी अपनी सी लगीं क्योंकि इन कविताओं में निहित किसी व्यक्ति विशेष न होकर मानव के साँझे सुख-दुख हैं।

किसी भी लेखक की ये सब से बड़ी उपलब्धि होती है कि पढ़ने वाला उसकी रचनाओं में डूब कर अपना जीवन देखने लगे। अपने सुख दुःख याद कर रोने या हँसने लगे। कवि के सुनहरे शब्दों से अपने दिल के आस-पास एक रंगीन टोकरी बुनकर उसमें कविताओं के फूल सहेज ले। कल्पना ये कर पाने में सफल रही हैं। उन्होंने हमें सुंदर कविताएं ही नहीं, बल्कि कुछ वैचारिक ऐसा भी दिया है जो दिल ही नहीं, दिमाग को भी पोषित कर रहा है।

कल्पना मनोरमा आपको ‘बाँस भर टोकरी’ कृति के लिए मेरे दिल की टोकरी भर बधाई🌹

वनिका पब्लिकेशन की प्रकाशिका नीरज शर्मा भी बधाई की पात्र हैं और निर्देश निधि जी भी,जिन्होंने इतना सुंदर कवर बनाया है।

मुझे लगता है हमेशा की तरह इन पृष्ठों से गुजरते हुए पाठक कवि के सृजन में अपने दिल की धड़कन ज़रूर सुन सकेगा।

 

इस संग्रह की कविताओं की कुछ पंक्तियाँ चुनकर आपके लिए........

 

'उसने पूछ लिया, आवाज़ की दिशा में

उठाकर मुँह,कौन हो तुम

जो पुकारता है किन्तु दिखता नहीं

किसने समझा है,मुझे जीवित

और पुकारा है,मेरे नाम से'

..........................................

'संसार से विदा के वक्त

उसके कंठ में अटकी रह जाती है

तुलसी की एक पत्ती

क्या एक तुलसी की पत्ती ही

जन्म और मृत्यु के बीच की नाव है'

...........................................

 

प्रार्थना तुम हो जाना फलीभूत

जब देखना सत्य को

बनते हुए प्रार्थी

..................................

 

बांसुरी जब छूती है होट प्रेमी के

तो बेखबर राधिका

पहुंच जाती है यमुना के किनारे तक

बांस छान देता है, ज्यों का त्यों

कृष्ण के आकर्षण को

राधिका के अस्तित्व में'

........................................

‘बेटी की विदाई में

पकवानों से भरी टोकरी में

मां छिपा देती है

छोटी सी लाल गाँठ में बाँधकर

सागर भर मर्यादा

धरती भर धैर्य'

......................................  

इस से आगे मेरे कहने के लिए कुछ रह ही नहीं जाता। पाठक किताब पढ़ें और निर्णय लें।

मैं बस इतना ही कहूँगी......

'कोई पढ़कर खुश होता है

किसी की आँखें नम होती हैं

मेरी लिखी कहानी में सबको

अपनी कहानी दिख जाती है'

******

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K

बाँस भर टोकरी ( काव्य संग्रह)

कल्पना मनोरमा ( लेखिका)

प्रकाशन (वनिका पब्लिकेशन)
मूल्य (199)


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