गेंदा-गेंदा मन हुआ

गेंदा-गेंदा मन हुआ, तन वासंती रंग
पवन  झकोरे   छोड़ते,  वैरागी मकरंद।।


फूल, फूलकर कह रहे,अपना मन-अनुराग
तितली ले ले उड़ रहीं, सौरभ भरा पराग।।


चंचल मधुकर छेड़ते, कलियों को भर अंक।
पतझड़ लेकर आ रहा, उन्मादी  आतंक।।


अमरबेल भी लहक कर,करती मधुरिम शोर
लेकिन लेती खींच सब, दूजे तन का ज़ोर।।


डाली झुकी गुलाब की,मन में भरे विनोद 
मन उदास में भर रहा ,सौरभ वाला ओद ||


***

Comments

  1. गेंदा-गेंदा मन हुआ, तन वासंती रंग
    पवन झकोरे छोड़ते, वैरागी मकरंद।।

    बहुत सुंदर एवं मनोरम दोहों के लिए बधाई कल्पना मनोरमा जी 🌹🙏🌹

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