केतकी का फूल

 


वैसे तो केतकी का फूल मैंने आज पहली बार देखा है लेकिन इसकी सुंदरता का वर्णन बचपन में आजी की कहनी, "मैया करेला खायो जी" में खूब सुना था। बड़ा मन था कि कभी केतकी को नज़र भर देखें। जब सामने आई तो दंग रह गई। कोमलांगी केतकी की बनक ठनक, रंग रूप सब मृदुल किंतु रहने को जो डाली मिली वह कितनी कठोर। कठोरता में जन्म लेने वाली केतकी अपनी ताकत भर सुंदर है। क्या सौंदर्यबोध उसके हिस्से स्वयं चला जाता है जो कठोरता को मन बेमन घूंट घूंट पीता रहता है? यहां गुलाब की चर्चा करना अनुचित ही कहलाएगा? क्योंकि गुलाब सोचे तो भी वह केतकी नहीं बन सकता और केतकी गुलाब...। सभी तत्वों का अपना सौंदर्य अनूठा और मौलिक होता है। कोई किसी की तरह नहीं हो सकता। प्रशंसा घटक की नहीं होनी चाहिए बल्कि बनाने वाले की तारीफ़ बार बार होनी चाहिए। जिसने करोड़ों उपादानों की वंश परंपरा को उत्तरोत्तर बढ़ाने हेतु बीजों को अपनी एक मुट्ठी में सहेज रखा है। केतकी के फूल को देखकर उपजा ज्ञान। जय हो!!



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