नहीं लगता डर

 


नहीं लगता डर

उन स्त्रीयों से

जो होती हैं स्वाभाव से

झगड़ालू

न ही वे स्त्रियां खटकती हैं

हमारी आपकी आँखों में

जो बात बात पर बैठ जाती हैं

फुलाकर मुंह अपना

न ही वे स्त्रियां बुरी लगती हैं

जो जन्म के साथ

मौन लेकर होती हैं अवतरित

न ही वे स्त्रियां खलती हैं

किसी को भी

जो कहने को सत्य

कर बैठती हैं

बतंगड़ खड़ा

डर उन स्त्रीयों से लगता है

जो किसी की अधसुनी बात को

दौड़ पड़ती हैं लेकर

आधी रोटी पर दार की तरह

खाने परोसने

वे साधती हैं निशाना हवा में

और देती हैं तूल इतना

कि लगने लगती है

बे बात की बात भी

अच्छे अच्छों को

एकदम सच्ची

लेकिन जब आता है वक्त

करने को आमना सामना

बन जाती हैं

वे स्त्रियां कछुआ

और छिपा लेती हैं

मक्कारी भरा अपना सर

सुरक्षा कवच के भीतर

मामला ठंडा होने तक।

 

Comments

  1. गहनता लिए सराहनीय सृजन।
    मन द्रवित होता है ऐसी औरतों को देख है कर...। नादानी में झूलती है जीवन भर।
    सादर

    ReplyDelete

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