अम्मा वाले मेले
सोनजुही के सपने वाले
याद आ गए दिन अलबेले ।।
लहक-लहक कर चलता था
जब माटी का गुड्डा मतवाला
गुड़िया पीठ झुकाये रचती
चौका, पूड़ी हलुए वाला
त्योहारों की लड़ियाँ लाईं
यादों वाले मेले-ठेले।।
बुआ भतीजे की जोड़ी पर
प्राण निछावर करतीं दादी
सो जाते थे हम सब छिपकर
बढ़ते तारों की आवादी
चमक चाँदनी में दिखते हैं
कच्चे-पक्के झोल-झमेले।।
कातिक चढ़ा चौखटें ज्यों ही
दीया बन गया मन बौराया
मौन नहावन पचभिकियों के
कच्चे मन चूनर लहराना
फुलझड़ियों की सुखद रोशनी
में थे अम्मा वाले मेले।।
***
चित्र : अनु प्रिया
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१४-११-२०२०) को 'दीपों का त्यौहार'(चर्चा अंक- ३८८५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
दीप पर्व की मंगलकामनाएं। सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteप्रिय अनुप्रिया जी,
ReplyDeleteबचपन के इस हृदयस्पर्शी चित्रण के लिए साधुवाद 🙏
दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएं 💥🙏💥
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
सुन्दर रचना।
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