बिना परीक्षा के प्रमोशन

 परीक्षा के विपक्ष में 

काश हमेशा ऐसा होता बिना परीक्षा प्रमोशन मिल जाता
बच्चे जीते अपना बचपन ,फिर भी कल सुंदर हो पाता।

मेरे  विचार "बिना परीक्षा प्रमोशन "को सही मानने के उपलक्ष्य में होंगे ।आशा करती हूँ आप सभी की सहमति मुझे मिलेगी।
महोदय, परीक्षा की प्रकृति वस्तुपरक सूचना व ज्ञान को जांचना है न कि विषयी समझ की। यही कारण है कि शिक्षा आज के छात्रों के लिए न केवल बोझिल हो चुकी है बल्कि एक गैर जरूरी, गैर उत्पादक कार्य का रूप ले चुकी है।आज की  शिक्षा का मकसद डर पैदा करना  बन चुका है और डर से उन्नति नहीं अवनति ही हाथ आती है ।
आख़िर इस में बुरा ही क्या है ? कि बच्चे को परीक्षा नामक भूत से बिना डरे अपना जीवन यापन करने दिया जाए । जिस समय को चारों ओर से बुरा-भला कहा जा रहा है, उसी समय ने हम छात्रों को परीक्षा जैसे पेचीदा कार्य से बचाया है ।
ऐसा नहीं है कि हम छात्र पढ़ नहीं रहे हैं, और ऐसा भी नहीं है कि हमें हमारे भविष्य की चिंता नहीं है, बस खुशी की बात ये है कि मुल्यांकन नामक दानव के चंगुल से छुट्टी मिल गयी है ।
आपको ज्ञात हो परीक्षा के बाद उसके परिणाम की घोषणा जब होती है तब  कितनों की साँसें ऊपर नीचे होने लगती हैं । कितनों के दिलों पर गहरा आघात लगता है।
यहाँ पर मैं ये साफ कर देना चाहती हूँ कि ये आघात न ही अध्यापक के द्वारा हमें मिलता है और न ही अंकों के द्वारा बल्कि ये आघात उत्तपन्न होता है कक्षा के दो -चार पढ़ाकुओं के मज़ाक बनाने से ।
जबकि हम उस रँग -बिरंगी दुनिया के हिस्से हैं जहाँ अनेकानेक भिन्नताएँ देखने को मिलती हैं तो हम एक जैसे कैसे हो सकते हैं और न ही हमारा दिमाग सुपर कम्प्यूटर की तरह से है।
मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि इस  दुनिया में ऐसा कोई भी विद्यार्थी नहीं होगा जिसको अपना परीक्षा फल प्राप्त करते समय अपने माता-पिता और रिश्तेदारों के चेहरे याद न आते हों  क्योंकि उच्च अंक  लाने का दवाब वहीं  से आता है , महोदय !
ज़रा दो घड़ी रुकर सोचकर देखिए ,यदि बिना परीक्षा के विद्यार्थियों को आगे बढ़ने का अवसर मिला तो कोई बच्चा सपने देखने की उम्र में आत्महत्या नहीं करेगा ।
चाँद -सितारों के तोड़ने की ललक को ताक पर रखकर  मौत को गले नहीं लगाएगा ।
महोदय, मैं बार -बार ये बात कहती रहूँगी कि यदि बिना परीक्षा के विद्यार्थियों को जीवन में आगे बढ़ने का अवसर मिला तो वे कभी अपनी जान लेकर अपने प्यारे माता-पिता को दारुण दुख में नहीं धकेलेंगे ।
न परीक्षा होगी और न ही हम विद्यार्थियों को हार जाने का भय सताएगा । याद रखिये कि दुनिया में 100 प्रतिशत जैसा कुछ नहीं होता। मानवीय भूलों के लिए सुधार कि हमेशा गुंजाइश होनी चाहिए । परीक्षा नहीं अपितु हमें हमारा सकारात्मक नजरिया बढ़ाने में समाज का सहयोग मिलना चाहिए  क्योंकि सकारात्मकता के द्वारा ही हम चुनौतियों से लड़ने की ताकत जुटा पयाएँगे।

**



परीक्षा के पक्ष में  

काश कभी ना ऐसा होता बिना परीक्षा प्रमोशन मिलता 
ना होता जीवन आवारा, कोई मन ना इससे डरता ||

मेरे विचार "बिना परीक्षा प्रमोशन " के विपक्ष में होंगे ।आशा करता हूँ आप की सहमति मिलेगी।
 महोदय, परीक्षा ही वह कसौटी है, जिस पर छात्र की योग्यता को परखा जाता है । शिक्षा को सरल बनाने के उद्देश्य से इसे विभिन्न चरणों में बाँटा गया है ।यह जाँच किए बिना कि छात्र एक कक्षा के पाठ्‌यक्रम का ज्ञान पूर्णतया पा चुका है या नहीं, उसे अगली कक्षा में कैसे भेजा जा सकता है ? परीक्षा के द्वारा छात्रों में प्रतिस्पर्द्धा का भाव, अध्ययन के प्रति रुचि और सजगता उत्पन्न की जा सकती है|
प्राय: देखा जाता है कि जिन विषयों की परीक्षा नहीं होती, छात्र उनमें रुचि लेना भी बन्द कर देते हैं । कहते हैं; पुनरावृति स्मृति की जनक है। अत: ज्ञान मस्तिष्क में स्थायी तभी होगा, जब इसकी पुनरावृति होगी । पुनरावृति परीक्षा के भय से ही होती है । परीक्षा के भय से छात्र अपना पाठयक्रम समय पर कंठस्थ करना चाहता है । इससे उसमें अध्यवसाय की प्रवृति जागृत होती है । परीक्षा केवल छात्र की योग्यता और पढ़ाने के ढंग का अंकन भी करती है ।
सच कहें तो श्रेष्ठता की पहचान और किसी स्थिति का सामना करने की तैयारी का निरिक्षण ही सदैव परीक्षा का उद्देश्य रहा है। परीक्षा हमें हमारी कमियों और हमारी ताकत के बारे में बताती है। यह एक ऐसे मित्र की तरह है जो हमे सच्चाई का आईना दिखता है| सोचिये, इस भागते-दौड़ते समय में किसी संस्था ,घर या विद्यालय में बिना परीक्षण किये किसी को नौकरी पर रख लिया जाए तो आगे उच्च  उपलब्धि प्राप्त होगी ही ,कहा नहीं जा सकता |
अंत में यही कहना चाहूँगा कि परीक्षा डरने का नाम नहीं बल्कि हमें हमारे होने का अनुमान लगाने का अभियान है | इसकी परिधि में आकर ही बनता जीवन महान है |

***
 
 

विद्यालय में छात्रों के लिए लिखे गए संवाद  को प्रथम स्थान मिला 


Comments

Popular posts from this blog

एक नई शुरुआत

आत्मकथ्य

बोले रे पपिहरा...