प्राचीर से

 


प्राचीर से जो उग रहा, वह प्राण प्यारा है

रश्मियां सुरभित सलोनी रूप न्यारा है

पवन वासंती बहेगी खोलकर अब केश अपने

भुवन दमकेगा नदी और सर किनारा है।

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