खेल

किसी ने कहा,जीवन खेल है
हमने खेल को
जीवन समझ लिया


दिन के आरण्यक में
खोजने लगे हम
भूख की डाल पर
तृप्ति के फूल


अकेले रहकर खुद से
आँख मिलाना कठिन लगा
तो हमने

भीड़ को चुन लिया और
कबीलों में खो गए


लड़ने लगे दिन से
लोगों को वह खेल लगा
हमने खेल में
खो दिया खुद को

 
खेल स्थगित करता गया
हमारा रोना
तो हम हँसते गए खुद पर
और ज़िंदा बच गए।

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