आओ खेलो होली
किंकर्तव्यविमूढ़ खड़े क्यों
आओ खेलो होली है।।
सपने में आई थीं अम्मा
पूछ रही थीं हाल तुम्हारा
मौन संजोए तुम वर्षों से
कैसे कहती चाँद-सितारा
दरवाजा खोला अम्मा ने
खिड़की हमने खोली है
आओ खेलो होली है।।
वस्तुनिष्ठता समझ न पाए
अम्मा के अरमानों की हम
कर बैठे आकृतियाँ धूमिल
मधुमासी आवाज़ों की हम
सन्नाटों को मुखरित कर दो
फगुआ की ढोलक बोली है
आओ खेलो होली है।।
मूल्याँकन को छोड़ सजाएँ
चलो बिगड़ती जीवन गाथा
देर रात तक रही दबातीं
जैसे माँ बचपन का माथा
आँखों के जल सागर में तिर
मन की मछली डोली है
आओ खेलो होली है।।
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