तुम भी आओ!

रंग-बिरंगी बातें ले

घर आया फागुन

तुम भी आओ !

 

बन्द खिड़कियों ने खुश हो

घूँघट सरकाया

रंग-अबीर हवा में घुल

आँगन में छाया

 

बतरस की सौगातें ले

घर आया फागुन

तुम भी आओ !

 

मृगतृष्णा ही सही

भली लगती है मन को

गए दिनों की खुश यादें

बहलातीं दिन को

 

केसरिया-सी रातें ले

घर आया फागुन

तुम भी आओ!

 

नुक्कड़-नुक्कड़ फूले हैं

गेंदे-से मुखड़े

फगुनाई थापों ने

छीने सबके दुखड़े

 

खुशियों की बारातें ले

घर आया फागुन

तुम भी आओ!

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