रात के ग्यारह बज रहे थे। बेटे को जल्दी सुलाने की खातिर माँ परेशान थी लेकिन बेटा खिड़की से झाँकते चाँद पर फ़िदा था। लाख जतन करने के बाद भी जब निक्कू नहीं सोया तो गुस्सा होकर माँ ने उसकी तरफ से करवट बदल ली। “ मम्मा , चाँद से मैंने सिर्फ एक तारा माँगा था फिर भी वह बादल ओढ़कर छिप गया। ” निक्कू ने माँ को अपनी ओर खींचते हुए कहा। “ चाँद बहुत दूर से अभी-अभी आसमान पर आया है , थका होगा। वैसे भी पहले वह अपने सितारों से बात करेगा क्या तुझसे? अच्छा! चलो अभी सो जाओ , कल ग्रेट मिल्टन एकेडमी में इंटरव्यू है तेरा। तुझे स्कूल जाना है। गिनती , अंग्रेजी के अल्फावेट , ओलम, तुझे जो याद करवाया गया है, सब कुछ याद है न ?” माँ ने पूछा। “ हाँ मम्मा , लेकिन मुझे अभी तारा चाहिए, हूँ हूँ हूँ । ” बेटे ने जिद करते हुए कहा। “ निक्कू , आज सो जाओ, कल हम चाँद से तारा ज़रूर माँगेंगे , तेरे लिए। ” बेटे के अनोखे खेल पर माँ प्यार भरीं थपकियाँ देकर उसे सुलाने लगी। “ क्या चाँद बच्चों की नहीं, सिर्फ बड़ों की बात सुनता है ?” जिज्ञासा लिए वह बोला। “ निक्कू! सच कहूँ? क्योंकि झूठमूठ का बहलाना मुझे अच्छा नहीं लगता।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०९ -०६-२०२१) को 'लिप्सा जो अमरत्व की'(चर्चा अंक -४०९१ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी !!
Deleteसब जाते अवसान में,
ReplyDeleteकुटी महल प्रासाद।
लिप्सा जो अमरत्व की
मन का वह अवसाद।।
अद्भुत पंक्तियाँ कल्पनाजी।
बहुत सुंदर पंक्तियाँ!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसब जाते अवसान में,
ReplyDeleteकुटी, महल, प्रासाद।
लिप्सा जो अमरत्व की
मन का वह अवसाद।।--बहुत अच्छी और गहन पंक्तियां।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर संदेश
ReplyDeleteसुंदर,सारगर्भित दोहे।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteकस्तूरी कानन बसे,
ReplyDeleteसोना गृहे सुनार।
काया कंचन कांच की,
भूली क्यों गुलनार।।
बहुत ही सुंदर भाव समेटे लाजबाब सृजन,सादर नमन