लिप्सा जो अमरत्व की

 

कस्तूरी  कानन  बसे,

सोना  गृहे  सुनार।

काया कंचन कांच की

भूली क्यों गुलनार।।

 

दिवस डूबता रंग में

उगता लेकर रंग।

फिरता फिर क्यों भटकता 

भूषित भ्रमित कुरंग।।

 

रहे सुनहरा आवरण

भोर-सांझ के पास 

रजनी के मन कालिमा

नर खोजे विश्वास।।  


सब जाते अवसान में

कुटी, सदन,प्रासाद

लिप्सा जो अमरत्व की

मन का वह अवसाद।।


दिवस कहेगा मैं बड़ा 

रजनी भवें कमान 

बचा अबोला आदमी 

कैसे भरे उड़ान।।

।।

***

 

Comments

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०९ -०६-२०२१) को 'लिप्सा जो अमरत्व की'(चर्चा अंक -४०९१ ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. सब जाते अवसान में,

    कुटी महल प्रासाद।

    लिप्सा जो अमरत्व की

    मन का वह अवसाद।।

    अद्भुत पंक्तियाँ कल्पनाजी।

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  3. बहुत सुंदर पंक्तियाँ!

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  4. सब जाते अवसान में,

    कुटी, महल, प्रासाद।

    लिप्सा जो अमरत्व की

    मन का वह अवसाद।।--बहुत अच्छी और गहन पंक्तियां।

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  5. बहुत सुंदर

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  6. सुन्दर संदेश

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  7. सुंदर,सारगर्भित दोहे।

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  8. कस्तूरी कानन बसे,

    सोना गृहे सुनार।

    काया कंचन कांच की,

    भूली क्यों गुलनार।।

    बहुत ही सुंदर भाव समेटे लाजबाब सृजन,सादर नमन

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