सुमन केशरी से यह संवाद मात्र साक्षात्कार नहीं, एक रचनाकार की आत्मस्वीकृति है। सुमन केशरी एक ऐसी कवि हैं, जिन्होंने निःसंकोच अनेक विषयों पर कविताएँ रची हैं। वे रामायण-महाभारत के मिथकीय चरित्रों की मूल कथा को बनाए रख कर उनमें आधुनिक चेतना भर कर समसामयिक बनाने की कला में निष्णात हैं। इसी के साथ में ठेठ आधुनिक विषयों व संवेदनाओं की भी कविताएँ रचती हैं तथा कविताओं का विश्लेषण भी करती हैं। 'कथानटी' के रूप में वे न केवल कथा कहती हैं, बल्कि उसे जीती भी हैं। यह बातचीत स्मृति, संघर्ष, प्रेम, विचार और असहमति की कई परतें खोलती है। उनके लेखन में गहन सामाजिक दृष्टि, आत्ममंथन और स्त्री-स्वर की स्पष्टता है। साहित्यिक सत्ता से टकराते हुए वे अपनी मौलिकता बनाए रखती हैं। यह वार्ता हिंदी साहित्य में स्त्री की सजग, विचारशील और जिजीविषा-भरी उपस्थिति का दस्तावेजीकरण करती है। यह एक लेखिका के सतत संघर्ष और संवेदना की गाथा है। क.म. कल्पना मनोरमा ( संवादक ) सु.के. सुमन केसरी ( प्रतिसंवादक ) क.म. : आपने लिखना कब से शुरू किया? किसी की प्रेरणा से या स्वस्फूर्त। पहली कहानी/ कविता/आलोचना...
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०९ -०६-२०२१) को 'लिप्सा जो अमरत्व की'(चर्चा अंक -४०९१ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी !!
Deleteसब जाते अवसान में,
ReplyDeleteकुटी महल प्रासाद।
लिप्सा जो अमरत्व की
मन का वह अवसाद।।
अद्भुत पंक्तियाँ कल्पनाजी।
बहुत सुंदर पंक्तियाँ!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसब जाते अवसान में,
ReplyDeleteकुटी, महल, प्रासाद।
लिप्सा जो अमरत्व की
मन का वह अवसाद।।--बहुत अच्छी और गहन पंक्तियां।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर संदेश
ReplyDeleteसुंदर,सारगर्भित दोहे।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteकस्तूरी कानन बसे,
ReplyDeleteसोना गृहे सुनार।
काया कंचन कांच की,
भूली क्यों गुलनार।।
बहुत ही सुंदर भाव समेटे लाजबाब सृजन,सादर नमन