पुरानी धुन में

 

आज की भोर 
फ़िर दिखी
उठाए बादलों को अपनी गोद में
आकाश होने को आतुर

भोर ने छोड़ दिए कई दृश्य अनदेखे
अटके थे जो जंगली घास पर
प्रेम की तलाश में


पंछियों ने गाए गीत
चुग्गीले
टहनियों ने ली अंगड़ाई
तो पखेरुओं को मिली उड़ान
उनके मन की
पत्तियों ने फिर झुककर निहारा
वृक्ष के तने को
जड़ें पसर गईं थोड़ी और
गहराई तक


धरती ने उठाया दिशाओं को कंधे पर
तो सूरज ने पूर दिए
चौक नारंगी
क्षितिज अटारी पर
और लटक गया पनिहारी के घूंघट पर
शब्द ने छुए होंठ उसके
मौन जल को मिल गई वजह
तरल होने की


हवा ने बांट दी ध्वनियां
मद्धिम याकि तेज़
एक- दूसरे के कानों तक
मानवीय भावनाओं को मिली ताज़गी
तो चल पड़ा संसार
पुरानी धुन में |
 ***
 

Comments


  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 11 जनवरी 2021 को 'सर्दियों की धूप का आलम; (चर्चा अंक-3943) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. सुन्दर सृजन। विश्व हिन्दी दिवस पर शुभकामनाएं।

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  4. आप सभी हिंदी साहित्य से जुड़े हुए सुधी जनों का हार्दिक आभार !

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  5. बहुत सुंदर कविता।

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  6. अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।

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