तलाश

 
नदी ज्यों ही उतरी
पिता की गोद से
उसने पूछा उसी क्षण
मेरा लक्ष्य...


चिड़िया ने कहा
सागर


मैं मैं मैं मैं
जंगल,रास्ते,मैदान
गूँज उठीं कई आवाज़ें
एक साथ

नदी ने कहा
तुम सब सहयोगी हो
मेरी यात्रा के
महत्पूर्ण अंक और अंग हो
किन्तु लक्ष्य नहीं 


बातें सुन नदी की
किनारों ने जतायी 
नाराजगी अपनी

चलते रहते हैं हम
साथ-साथ, जीवन भर
फिर भी छोड़ देती हो तुम
देखते ही किसी को
मेरा साथ
बोले किनारे

नदी मुस्कुराई थोड़ी शरमाई  
माना कि जरूरी है
पाना लक्ष्य

किन्तु मर्यादा का भी होता है
अपना महत्व

और नहीं चाहती मैं 
 तुम्हें अस्तित्वहीन देखना 

किनारे लौट गए
दूसरी नदी की तलाश में ।

 
 

Comments


  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (१५-०८-२०२०) को 'लहर-लहर लहराता झण्डा' (चर्चा अंक-३७९७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  2. बहुत ही सुंदर रचना

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  3. किन्तु मर्यादा का भी होता है
    अपना महत्व.

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  4. वरना टूटते ही मर्यादा
    नदियों की।
    खो देते हैं तट
    अस्तित्व अपना।
    सैलाब में
    उसकी निर्लज्जता के!
    ......... आभार और बधाई आपकी सुंदर रचना के।

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  5. वाह!!!
    शानदार सृजन

    नदी ने कहा
    तुम सब सहयोगी हो
    मेरी यात्रा के
    महत्पूर्ण अंक और अंग हो
    किन्तु लक्ष्य नहीं

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  6. बहुत सुंदर गहन सार्थक भाव लिए सृजन।

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