शिक्षक की बदलती भूमिका
शिक्षक की बदलती भूमिका
शिक्षक दिवस हमें हर वर्ष इस बात की याद दिलाता है कि शिक्षा केवल पुस्तकों और परीक्षाओं तक सीमित नहीं है। समय बदलता है तो शिक्षा की ज़रूरतें भी बदलती हैं, और उसके साथ शिक्षक की भूमिका भी बदल जाती है। आज हम ऐसे दौर में खड़े हैं जहाँ सूचना, तकनीक और सामाजिक परिवर्तन की गति ने पारंपरिक गुरु–शिष्य जैसे पवित्र रिश्ते की परिभाषा ही बदल डाली है।
पुराने समय में शिक्षक को ‘गुरु’ कहा जाता था, जिसका अर्थ होता था, अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला वह व्यक्ति जो त्याग और तपस्या करते हुए जाग चुका है। गुरुकुल टूटे तो विद्यालय दीवारों में सिमट गईं। अब विद्या के आलय की दीवारें तोड़ी जा रही हैं। वह दिन कितना भयावह होगा, जब एक रोबोट क्लास अटेंड करता हुआ, आदमजात को पढ़ाएगा।
संवेदनाएं और मानवीय वृत्तियों के साथ जीता जागता हुआ व्यक्ति जो शिक्षण कर सकता है, क्या मशीनें संवेदनाओं का शिशु हृदय में प्रत्यारोपण कर सकेंगी?
इस तकनीकी सदी सबसे बड़ा औगुण, ये करुणा को सोखती जा रही है। मानवीय मंशाओं का ह्रास होता जा रहा है। जिस दौर में शिक्षक ही ज्ञानार्जन के प्रमुख स्रोत होते थे। विद्यार्थी को किताबें, तर्क, दर्शन और अनुभव कक्षाओं में ही ज्ञात हो जाता था। गुरु के मार्गदर्शन से न केवल भौतिक शिक्षा मिलती थी बल्कि संवेदनात्मक यथार्थ के बारे में विद्यार्थी ज्ञान अर्जित कर लेते थे। लेकिन आज इंटरनेट, गूगल और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की दुनिया में लगातार छात्रों को धकेला जा रहा है। अच्छी बुरी सब जानकारी बच्चे बच्चे की हथेली पर है। अब बचपन में बूढों तक का ज्ञान पाना कठिन नहीं है, बल्कि कठिनाई यह है कि कौन-सी जानकारी सही है, कौन-सी अधूरी और कौन-सी भ्रामक है? इसका ज्ञान बिल्कुल नहीं।
यही वह खतरनाक मोड़ है जहाँ से शिक्षक की भूमिका बदल जाती है। आधुनिक समय में शिक्षक को केवल जानकारी देने वाला ही नहीं, बल्कि मानवीय जीवंत विवेक और दिशा देने वाला मार्गदर्शक बनना पड़ेगा। मशीनों के बीच रहकर मानवता पढ़ानी होगी। विद्यार्थी को प्रश्न करना सिखाना होगा। इस भागते समय में धैर्य सिखाना होगा। तर्क विकसित करना और सत्य की पहचान करने वाली शिक्षा देनी होगी। यदि पहले शिक्षक ज्ञान का ‘स्रोत’ थे, तो अब उन्हें सागर बनना होगा।
माना कि आज विद्यार्थी का ध्यान नर्सरी से ज़्यादातर इस बात पर केंद्रित हो जाता है कि उसे कौन-सी डिग्री और कौन-सा पेशा हासिल करना है। शिक्षक यहां भी बड़ा मन और सतर्क दिमाग रखते हुए केवल करियर-गाइड न बनकर उन्हें जीवन-गाइड बनना होगा। बच्चे को यह सिखाना होगा कि सफलता केवल पेशे से नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं, नैतिकता और सामाजिक उत्तरदायित्व से भी आती है। और मानवीय मूल्यों को हासिल करते हुए भौतिक शिक्षा ग्रहण करना ही फलदायी होगा।
तकनीक ने शिक्षा के तरीक़े बदलकर रख दिए। ऑनलाइन कक्षाएँ, स्मार्ट बोर्ड, वर्चुअल लर्निंग और AI–आधारित टूल्स ने सीखने की दुनिया को आसान तो बना दिया है। लेकिन यह भी सच है कि जितनी सुविधा तकनीक ने दी, उतनी ही चुनौती पैदा कर दी है। बच्चे स्क्रीन पर निर्भर होते जा रहे हैं। सहनशक्ति घट रही है। रचनात्मकता के लिए दिमाग लगाना ही नहीं, एक क्लिक पर हर वह चीज़ उपलब्ध हो जाएगी तो नीरस किताबें क्यों पढ़ेगा।
सच कहें तो शिक्षक के पाँव तले की ज़मीन हिल चुकी है। आज के शिक्षक तकनीक और मानवीयता के बीच संतुलन बनाए में असमर्थ होता जा रहा है। एक ओर आधुनिक सुविधाओं से लैस निजी विद्यालय हैं, तो दूसरी ओर साधनहीन सरकारी स्कूल। ऐसे में शिक्षक को न केवल पढ़ाने वाले की भूमिका निभानी है, बल्कि समाज में समान अवसर और न्याय की चेतना भी जगानी है। वह अपने विद्यार्थियों को यह समझा सकता है कि शिक्षा केवल व्यक्तिगत उन्नति का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और परिवर्तन का औजार भी है। शिक्षक की बदलती भूमिका का एक और महत्वपूर्ण पक्ष है, भावनात्मक मार्गदर्शन। आधुनिक जीवन की दौड़ में बच्चे और युवा मानसिक दबावों से गुजर रहे हैं। प्रतिस्पर्धा, अकेलापन, पारिवारिक टूटन और आभासी दुनिया ने उनकी संवेदनाओं को झकझोर दिया है। ऐसे में शिक्षक को केवल अकादमिक मार्गदर्शक नहीं, बल्कि एक संवेदनशील श्रोता और मित्र भी बनना होगा।
अंततः कहा जा सकता है कि शिक्षक की भूमिका समय के साथ बहुआयामी होती गई है। अब वह केवल कक्षा में खड़े होकर पाठ पढ़ाने वाला व्यक्ति नहीं रहा। शिक्षक समाज का निर्माता, विचारों का मंथनकर्ता और जीवन का सहयात्री होता है। गुरु ही सुख और दुख, तकनीक और मानवीय ढंग में क्रियान्वयन का सही उपयोग सिखाता है, संवेदनाओं को जगाता है और जीवन के मूल्य स्थापित करता है।
शिक्षक दिवस पर हमें यही समझना होगा कि शिक्षक की यह बदलती भूमिका केवल एक व्यक्ति की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि पूरे समाज का सामूहिक संकल्प है। जब हम अपने शिक्षकों को सम्मान देते हैं तो हमें यह भी संकल्प लेना चाहिए कि शिक्षा को केवल साधन नहीं, जीवन की दिशा बनाने में महती योगदान है। शिक्षक ये सब समझते हुए बच्चों को व्यक्तिगत शिक्षा से, किताबों से और रिश्तों से जोड़ने का कार्य करना होगा। शिक्षण आम नौकरियों की तरह धन उगाही का साधन नहीं, अब शिक्षक को दीपक में पड़ी बाती की तरह जलना होता है। उजाला तभी द्विगुणित हो सकेगा।
आज के चकाचौंध भरे उजास में से शिक्षक को उन अंधेरों की तलाश करनी पड़ेगी जो व्यक्ति की रक्षा करते हैं, जो पालक की भूमिका निभाते हैं। तब कहीं डॉ. राधाकृष्णन के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर सकेंगे। हमारे समय की सबसे बड़ी आवश्यकता संवेदना और करुणा का संरक्षण करना है। अपने अतीत की मानवीय प्रविधियों पर विचार करना।
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