सर्वपल्ली राधाकृष्णन का पत्र देश के शिक्षकों और विद्यार्थियों के नाम.




                                               
प्रिय विद्यार्थियों और मेरे सहकर्मी शिक्षकों,
आज जब मैं आपसे संवाद कर रहा हूँ, तो मेरे मन में संतोष भी है और चिंता भी। संतोष इस बात का कि आप सब मेरे जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मना रहे हैं। और चिंता इस बात की कि कहीं यह दिवस केवल उत्सव, भाषण और औपचारिकताओं तक सीमित न रह जाए। मेरा आग्रह है कि इसे आत्ममंथन और पुनर्विचार का दिन बनाया जाए।

शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं है। जानकारी आज हर जगह उपलब्ध है। आपके हाथों में मोबाइल है, इंटरनेट है, पुस्तकालय हैं  किंतु याद रखिए, जानकारी और विवेक दो अलग अलग बातें हैं। जानकारी साधन देती है, किंतु विवेक वह शक्ति है जो सही-गलत का निर्णय करने की क्षमता देती है। और यह विवेक तभी विकसित होता है जब शिक्षक विद्यार्थी को सोचने, प्रश्न करने और आत्मावलोकन करने की प्रेरणा देता है। अतः शिक्षक का असली दायित्व केवल पढ़ाना नहीं, बल्कि जीवन का मार्ग दिखाना है। छात्र को पुनः पुनः सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित करना है।

मुझे यह देखकर खेद होता है कि आज की शिक्षा अक्सर डिग्री और नौकरी तक सीमित हो गई है। रोजगार निस्संदेह आवश्यक है, लेकिन यदि शिक्षा का लक्ष्य केवल जीविका तक सीमित रह जाएगा, तो समाज संवेदनहीन और संकीर्ण हो जाएगा। शिक्षा का सच्चा मूल्य तभी प्रतिपादित हो सकेगा जब वह मनुष्य को नैतिकता, संवेदनशीलता और सामाजिक उत्तरदायित्व का बोध कराएगी। इसलिए, मेरे सहकर्मी शिक्षकों से मेरी प्रार्थना है कि आप केवल योग्य विद्यार्थी न गढ़ें, बल्कि उन्हें सजग और सहृदय नागरिक भी बनाएँ।
तकनीक ने हमारे जीवन को आसान बनाया है। 

आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और डिजिटल साधन शिक्षा का हिस्सा बन चुके हैं। यदि मैं आज आपके बीच होता, तो मैं कहता—“इन साधनों को अपनाइए, प्रयोग कीजिए, परंतु ध्यान रखिए कि इन्हें मानवीय दृष्टि और नैतिक दिशा देना शिक्षक का ही कार्य है।” तकनीक अपने आप में न तो शुभ सोच सकती है, न अशुभ करने में सक्षम है।  तकनीक का चरित्र इस पर निर्भर करता है कि हम उसका उपयोग किस भावना और उद्देश्य से करते हैं। क्या क्या उससे करवा सकते हैं। जिस तरह कभी कहा गया था कि मन के दास नहीं, मनुष्य को चाहिए कि मन को अपना दास बनाएं। उसी तरह तकनीक आपको गुलाम न बना सके, आप लोग उससे दासत्व का काम ले सकते हो। 

एक और चिंता मुझे शिक्षा की असमानता को लेकर है। हमारे देश में एक ओर निजी विद्यालय हैं जो आधुनिक साधनों और सुविधाओं से सुसज्जित हैं, वहीं दूसरी ओर दूरदराज़ गाँवों के बच्चे मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं। जब तक शिक्षा सभी के लिए समान अवसर उपलब्ध नहीं कराती, तब तक समाज में समता और न्याय की स्थापना संभव नहीं। यदि मुझे आज नीति निर्माण का अवसर मिलता, तो मेरा पहला संकल्प यही होता कि हर बच्चे को समान और सुलभ शिक्षा मिले, चाहे वह किसी गाँव का हो या शहर का, अमीर परिवार का हो या गरीब का।

प्रिय विद्यार्थियों, आप भी शिक्षक के बिना अधूरे हैं। परंतु यह भी सत्य है कि शिक्षक भी विद्यार्थी के बिना अधूरा है। आपके प्रश्न, आपके विचार और आपकी जिज्ञासाएँ ही शिक्षक को जीवित और प्रासंगिक बनाए रखती हैं। यह संबंध एकतरफा नहीं, बल्कि परस्पर है। जैसे शिक्षक विद्यार्थी को ज्ञान और मार्गदर्शन देता है, वैसे ही विद्यार्थी शिक्षक को सतत् जागरूक और प्रगतिशील बनाए रखते हैं।

मेरे लिए शिक्षा केवल पाठशाला की दीवारों तक सीमित नहीं है। मैं शिक्षा को मानवता के प्रांगण में निर्मित एक ऐसे विद्यालय के रूप में देखता हूँ जहाँ संवेदना और करुणा की पाठशालाएँ होती हैं। जहाँ विवेक और जिम्मेदारी की परीक्षा हो, जहाँ हर व्यक्ति अपने भीतर छिपी संभावनाओं को पहचान सके। हमें ऐसे शैक्षिक ढाँचे गढ़ने होंगे जो विज्ञान और गणित के साथ-साथ करुणा और विवेक भी सिखाएँ। यही सतत् शिक्षा है और यही जीवन की सच्ची साधना।
आज शिक्षक दिवस के अवसर पर मेरा आप सबसे यही निवेदन है—अपने शिक्षकों का सम्मान केवल पुष्प अर्पित करके या भाषण सुनाकर मत कीजिए। उनके विचारों को आत्मसात कीजिए, उनकी शिक्षा को अपने जीवन में उतारिए। यही इस दिवस की सच्ची गरिमा होगी और यही मेरे जन्मदिन की सबसे सुंदर भेंट भी।

पर यह संबंध एकतरफ़ा नहीं होना चाहिए। जिस तरह विद्यार्थी अपने शिक्षक के प्रति श्रद्धा और विश्वास का भाव रखते हैं, उसी प्रकार शिक्षक को भी चाहिए कि वह अध्यापन को केवल नौकरी न समझे। पढ़ाना महज़ वेतन पाने का साधन नहीं, बल्कि संवेदनशीलता और आत्मीयता का लेन-देन है। शिक्षक को अपने विद्यार्थियों से उसी सच्चाई और अपनत्व से जुड़ना चाहिए जैसे एक दीपक अंधकार को हटाकर सबको समान रूप से रोशनी देता है।

याद रखिए, शिक्षा का सार यह है कि हम निरंतर सीखते रहें, बदलते रहें और अपने भीतर करुणा, संवेदना और विवेक को जीवित रखें। यही शिक्षा का पथ है, यही समाज की सेवा है और यही मानवता की प्रतिष्ठा है।
आपका
 डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन

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